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________________ ( २६ ) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. लिखा है कि नयसेनराजाने अपने जीवनमे ३०० नयामन्दिर ६४ वार तीर्थोंका संघ निकाला और कुँवे तलाव वावडीयों वगरह कराई विशेष आपका लक्ष स्वाधर्मियों की तरफ था जयसेनराजा के दो राणियों थी बडी का मीमसेन छोटी का चन्द्रसेन जिस्मे भीमसेन तो अपनि मातके गुरु ब्राह्मणों के परिचय से शिवलिंगोपासकथा और चन्द्रसेन परम जैनोपासक था. दोनो भाइयों में कभी कभी धर्मवाद हुवा करता था. कभी कभी तो वह धर्म्मवाद इतना जोर पकड लेता था की एक दूसरा का अपमान करने में भी पीच्छा नहीं हटते. थे ? यह हाल राजा जयसेन तक पहुंचनेपर राजाको बडा भारी रंज हुवा भविष्य के लिये राजा विचार में पड गया कि भीमसेन बडा है पर इसको राज देदीया जावे तो यह धम्मन्धिता के मारा और ब्राह्मणोको पक्षपात मे पड जैन धर्म ओर जैनोपासकोका अवश्य अपमान करेंगा ? अगर चंद्रसेनकों राज देदीया जायतो राजमे अवश्य विग्रह पैदा होगा इस विचारसागरमें गोताखाता हुवा राजाको एक भी रहस्ता नहीं मीला पर काल तो अपना कार्य कीया ही करता है राजाकी चित्तवृतिको देख एक दिन चन्द्रसेनने पुच्छाकि पिताजी आपका दोलमें क्या है इसपर राजाने सब हाल कहा चन्द्रसेनने नम्रतापूर्वक मधुर वचनोसे कहा पिताजी आपतो ज्ञानी है आप जानते है की सर्व जीव कम्र्माधिन है जो जो ज्ञानियोने देखा है अर्थात् भविव्यता होगा सोही होगा आप तो अपने दिलमें शान्ति रखो जैन धर्म का यह ही सार है मेरी तरफ से आप खातरी रखिये कि मेरी नशोमें आपका खुन रहेगा वहां तक तो में तन मन धनसे जैन धर्म की सेवा करूगा । इससे राजा जयसेन को परम संतोष हुबा तद्यपि अपनि अन्तिमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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