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________________ ( २२) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. - आचार्य स्वयंप्रभसूरि के पास अनेक देव देवियों व्याख्यान श्रवण करने को आये करते थे एक समय कि जिक्र है कि श्री चक्रेश्वरी आंबिका पद्मावति और सिद्धायिका देषियों सूरिनी का व्याख्यान सुन रही थी उस समय आकाश मागै रत्न चुड विद्याधर अपने सकुंटरब नदिश्वर द्विपकी यात्रा कर सिद्धाचलजी की यात्रा करने को जाते हुवे का वैमान आचार्य स्वयंप्रभसूरि से उपर हो के जा रहा था वह सूरिजी के सिर पर आता ही रूक गया रत्नचूड विद्याधर नायकने सोचा की मेरा विमान को रोकनेवाला कोन है उपयोग लगाने से ज्ञात हुवा कि में जंगम तीर्थ की आशातना करी यह बुरा किया झट वैमान से उत्तर निचे आ सूरिजी को वन्दन नमस्कार कर अपना अपराध की माफी मागी सूरिजीने धर्मलाभ दीया और अज्ञातपणे हुवा अपराध की माफी दी तत्पश्चात् रत्नचूड सपरिवार सूरिजीका व्याख्यान श्रवण करने को बेठ गया आचार्यश्रीने वैराग्यमय देशना दि संसारकी असारता मनुष्य जन्मादि उत्तम सामग्री प्राप्ती की दुर्लभता बतलाई इत्यादि विद्याधर नायक के कोमल हृदय पर उपदेश का असर इस कदर का हुवा कि वह संसार त्याग सूरिजी महाराज के पास दीक्षा लेने को तय्यार हो गया परंतु एक प्रश्न दीलमें उत्पन्न हुवा वह झट खडा हो सूरिजीसे कहने लगा कि __ " सुगुरु मम विज्ञापयति मम परम्परागत श्रीपार्श्वनाथजिनस्य प्रतिमास्ति, तस्यवन्दनो मम नियमोऽस्ति, सारावणलंकेश्वरस्य चैत्यालय अभवत्. यावत् रामेण लंका विध्वंस्मिता तावद् मदीया पूर्वजेन चन्द्रचुड़ नरनाथेन वैताढ्य प्रानीता साप्रतिमा मम पाास्ति तया सह अहं चारित्रं ग्रहीष्यामि". Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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