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________________ ( १६३ ) कुटती वेळा हृदयना खरा शोक करतां वधारे विचार तो स्त्रीओने हालना वखतमाँ एज आवे छे, के आपणाथी बराबर कुटातुं हशे के नहीं, आपणने कोई मूर्ख तो नहीं कहे ! ए उपरथी खुल्लुं जणाय छे के हालनुं रडवुं अने कुटवुं फक्त लोकोने बताववा पुरतुंज छे. हवे शोक करवाना कारणथी परलोकसंबंधी कर्मबद्ध थई, तीर्थचादि गति प्राप्त थायछे ते बदल शास्त्रकार एम कहे छे के, अदम्माणं संसार वट्टणं तिरिय गई मूलं ॥ एटले आर्तध्यानथी जीवने कोईपण लाभ नहीं मळतां फोगट कर्मबंधन थाय छे, अने तेथी भवांतरे तिर्यचादि गति प्राप्त थाय छे; माटे आर्तध्याननो त्याग करवानी तजवीजमां प्रवर्तनुं एम शास्त्रकार कहे छे; अने शोक करवो ए आर्तध्याननीज प्रवृत्ति छे. पुरुषो करतां स्त्रीओज शोकमां बधारे प्रवृत्तमान थाये. चिंतामण रत्न जेवो अमुल्य मनुष्य जन्म पामी, परलोकनुं साधन करवा तप जप त्रतादिके करीने पुन्यनो संचय करवो, अने पछी आर्तध्यानमां लुब्ध थई महा प्रयत्नथी संचय करेली अत्युत्तम वस्तुनो नाश करवो, ए अमारी सुज्ञ अने सुशील बहेनोने बीलकुल योग्य नथी; कारणके स्त्रीओ उपवासादिक कठीन तपस्या करे छे, धार्मिक कार्यमां मोटो भाग ले छे, तो आवा निरर्थक शरीरने पीडादायक लोकमां निंदनीक अने अधोगति प्रत्ये प्राप्त करनार, एवो महा हानिकारक अने दुष्ट जे रडवाकुटवानो रिवाज, तेने वळगी न रहेतां अने रुढीना धिक्कारयुक्त शृंखलाथी बंध न थतां, तेमांथी मोकळा थई आ हानिकारक रिवाज जलदथी निर्मूळ करवा प्रयत्न करशे, एवी आशा छे. हवे हुं मारो मुख्य विषय, जे अन्य शास्त्रप्रमाणे व्यवहारिक क्रिया आदराववी, ते तरफ फरूं छं. हाल समये दुनियामां जे जे धर्मों प्रचलित छे ते हिंदू, मुसलमान, पारसी, क्रिश्चियन, बुध विगेरे तमाम धर्मना लोको पोतपोतानी संस्कारादि क्रिया पोताना शास्त्र मुजब करे छेआपणे मात्र परावलंबीपणाथी स्वशास्त्र तरफ दुर्लक्ष करीने, अन्यमतीओना मिथ्या मानेला शास्त्र प्रमाणे आपणी व्यवहारिक क्रिया करीए छीए, ए बहु दिलगीरीनी वात छे. आद्यधर्मसंस्थापक श्री रुषभदेव भगवाने ज्यारे व्यवहार धर्म प्ररुथ्यो, ते वेळाए मनुष्यने जन्मथी अंत्य सुधी सोळ प्रकारना संस्कार करवा कह्या छे, ते बदल श्री वर्धमानसुरीए 'आचार दीनकर ' ग्रंथमां सोळ प्रकारना संस्कारनुं वर्णन कर्तुं छे: सोळ संस्कारनां नाम. - गर्भाधानं पुंषवनं जन्म चंद्रादि दर्शनं । श्रीरासनं चैवेषष्ठी तथा च शुचीकर्म च ॥ १ ॥ तथा च नामकरण अन्नप्राशनमेव च । कर्णवेयो मुंडनंच तथोपनयनंपरं ॥ २ ॥ पाठो भो विवाह वृतागेपातकमस । एमि षोडश संस्कार ग्रहणां परिकीर्तत ॥ ३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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