________________
( १६० )
क्रिया करवा लाग्या छे; परंतु हालमां जे क्रियाओ करीए छोए ते ब्राह्मणी धर्म प्रमाणे तो शुं, पण हलका हिंदुओ जे शुद्रोने नामे ओळखाय छे, अने जेओने माटे “ शुद्रकमळाकर ” नामनो ग्रंथ लखायो छे, ते प्रमाणे पण आपणां लग्न थतां नथी ! आपणा जैनोमां जुदी जुदी न्यातो छे, अने ते जुदी जुदी न्यातोमां लग्ननी विधि तथा रुढीओ जुदी जुदी छे; एटले आपणी लग्ननी हालमां चालती रुढीओ कया धर्मशास्त्र प्रमाणे छे, ते नक्की करी शकातुं नथी. =यारे एवी कोईपण धर्मशास्त्रथी विरुद्ध मात्र रुढी प्रमाणे जोडी कहाडेली विधिथी, जे चधुवरनुं जोडुं बंधाय, तेओनां मन धर्म प्रमाणे ऐक्यतावाळां थाय, ए बनवुं घणुंज अशक्य छे. जैनधर्म अहिंसक छे, अने ब्राह्मणी ( वायीतांत्रिक) धर्म हिंसक छे. हालमां जे क्रिया आपणे करीए छीए, ते वाममार्गथी उद्धरेली मिश्रतांत्रिक क्रियाओ छे. ते पैकी दाखला नरीके एकज बतावीश के लग्न प्रसंगे मधुपर्कना समये, ब्राह्मणो विष्टर विष्टर विष्टरः करीने भणे छे, पछी गौर गौर गौर कहे छे, अने पछी मधुपर्कनी क्रिया करवामां आवे छे; अर्थात् बिष्टर एटले कन्यानो भाई पोताना बनेवी ( वर ) ने मधुपर्क आपे छे. मधुपर्कनी विधीमां लख्युं छे, के ‘मधुपर्के गवालंभ:' एटले मधुपर्कमा गायनुं आलंभन करवुं. ( हालना पंडितो आ चाक्यनो एवो अर्थ करे छे, के मधुपर्कमां गायनुं दान करवुं ); परंतु 'विना मांसौ मधुपर्को न भवति' अर्थात् मांस विना मधुपर्क थायज नहीं तो पछी, दाननो अर्थ करनारनी वात केली साची मनाय ? एवी रीते बीजी वणी क्रियाओ तांत्रिक ग्रंथोने आधारे प्रतिनिधीरुप वस्तुओ चलाववामां आवे छे, पण ते सघळानुं वर्णन करतां वखत घणो जोईए, माटे अहींथी अटकावी आगळ कहेवानुं के आपणां जैनशास्त्रमां लग्नादि विधिओ छे. जो ते प्रमाणे आपणे दरेक कार्य आपणा धर्म प्रमाणे करीए, तो आपणी उछरती प्रजाना मन उपर ते प्रमाणे छाप बेसाडी शकी; अने जो कोमळ अंतःकरण उपर व्यवहारिक धर्मनी छाप बेठेली होय, तो धर्म तरफ वळेलुं अंत:करण अधर्माचरण करेज नहीं, ए बात निर्विवाद छे. जेम जेमनानी वयनां बाळकोने नाना विधविध वृत नियमो माटे आपणे "पचखाण " करतां शीखवीए छीए, अने लीलां पचखाण प्राण जतां पण तेओ तोडता नथी, तेम आपणे तोडवा देता नथी; तेज प्रमाणे लग्न वखतनी प्रतिज्ञाओ एटले पचखाणो पण आपणा धर्मशास्त्राने अनुसरीने होय, तो ते तोडी शकाय नहीं अने ज्यारे लग्न विधि वखते लीलां पचखाण तोडी शकाय नहीं, एवी 'धर्मनी फरज बजाववानो आग्रह होय, तो कोईपण जोडुं शियळवृतथी चळीत थाय नहीं; तेम इर्पा, द्वेष, वैर अने वडीलोथी अमर्यादित थई हालमां जे अधर्मयुक्त अव्यवहार चालतो जोत्रामां आत्रे छे, अने तेना फळरुप ठामठाम कलह तथा फूट अने तुट जोवामां आवेछे, तेनो सदंतर नाश था. बाकी हालमां चालती अन्य धर्म प्रमाणेनी क्रियाथी आपणी दशा घणी दयाजनक थई गई छे. जेम -
मनहर छंद
संपतणो जंप गयो कुसंपनी लाह्य लागी, बागी हांक शोकनी अधाग थाक लागीओ; तुच्छ दाममाट हाटने विगाडी सेठीआओ, माया मस्त धयेल जणाय छे वैरागीओ;
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com