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(१२५) आचारविचार भूली जई, पोताना वेशनो लाभ लई, साधुपणाने एक धंधारुप बनाव्यो अने स्वार्थमा लुब्ध थई परमार्थ भूली गया, अने पोतानी सत्ता ने पोतानो परिवार केम वधे तेने माटे शास्त्र विरुद्ध हलका उपायो योजवा लाग्या, अने पोतानो परिवार वधारवाना हेतुथी, गरीब अने अज्ञान लोको पासेथी तेमनां बाळको गमे तेवी रीते लेवा लाग्या, अने धर्मनी आज्ञाओनुं उलंघन करी मंत्र, तंत्र, विगेरेमां लक्ष आपवा लाग्या, ने झाडाझपटो नाखवा लाग्या, अने गृहस्थनीज रीते वर्तवा लाग्या. आ ठेकाणे मारे जणावq जोईए के, जैनधर्मर्नु रहस्य एटलं बधुं सरस छे अने जैननी शैली एटली बधी सारी छे के, कोईपण विद्वान् जो निष्पक्षपातथी विचार करे तो आ धर्म अति उत्तम छे एम कह्या विना चालेज नहीं. आपणो जैनधर्म "एकस्ववीझीट" नथी, पण दरेक मनुष्य तेमां "ईनीशीयेट" थई शके छे ने तेनो लाभ लई शके छे. तेनां पुस्तकोना अभ्यास अने रटणथी माणसमां सहृदयता, सद्गुण, डहापण, भ्रातृभाव विगेरे गुणो आवे छे; पण कही गयेला मध्यमकाळना साधुओ तो ते पुस्तको वांचवाथी बेनसीब रह्या, एटले तेओनी तेवी स्थिति थई. ते वखतना साधुओ उपरथी आपणे श्रावकोनी स्थितिनी कल्पना करी शकवी सहेल छे. साधुओनो कुसंप तेओमां पेठो, साधुओ ज्यारे धर्मर्नु रहस्य भूली गया त्यारे तेओ धर्मरहित रहे, ए कांई नवाई नथी; कुसंप अने धर्मना अभावथी तेओनी स्थिति दुबळी थाय एमां कांई नवाई नथी. जे माणसमां धर्मबळ विशेष होय ते माणस आ दुनियामां जय पामे छे, ए महावाक्य खरेखरुं छे. नीतिरुपी नौकाथी वेनसीब माणस आ संसारसागर तरी शकतो नथी. आपणे अर्वाचीन ने प्राचीन इतिहास तरफ नजर करशं तो ए वात साची मालुम पडशे. ईजिप्तना राजा ज्यारे धर्मनेता अने राज्यनेता हता, त्यारे इजिप्तनु राज्य सारीरीते चालतुं हतुं, त्यारे प्रजा घणी धनवान, आवाद ने संतोषी हती. आरब लोकोए तेओना धर्मना जुस्साने लीधे घणा देश जीत्या, अने युरोपना केटलाक भागमां पण पोतानी सत्ता फेलावी हती. युनाईटेड स्टेट्स के जे हाल व्यापारमा, समृद्धिमां, केळवणीमां ने कारीगरीमा अग्रेसर छे, तेना स्थापनार धर्मना जुस्सावाळा अने पोताना धर्मनो बचाव करवा माटेज ते देश वसावनारा, थोडा घणा अंग्रेजोज छे. आ उपरथी एम जणाय छे के, जे माणसो पोतानो धर्म बराबर समजीने पाळे छे अने ते प्रमाणे वर्ते छे, तेओ आ दुनियामां जयने मेळवे छे, अने तेओ शं शं चमत्कारिक बाबत करी शकता नथी? हवे साधुओनी ने श्रावकोनी हालनी स्थिति तरफ नजर फेरवीए.
सत्यविजय साधु. विक्रमनी सत्तरमी सदीमां सत्यविजय नामना साधु थया. साधुओनी अने जेने परिणामे श्रावकोनी दुर्दशा अने नबळी स्थिति जोई, साधुओने उंची स्थितिमा लाववा तेमणे महा प्रयास को. आचारहीन, स्वार्थी ने पैसाना लालचु साधुमांथी धर्ममां कुशळ, ज्ञानी, गुणी, अने सुचारित्र पाळवावाळा साधुओने ओळखवा माटे पीळां कपडां पहेरवानो धारो काढयो, अने आनी साथे साधुओनी स्थिति सुधारवा माटे घणा प्रशंसनीय प्रयत्न कर्या; पण चरित्र सुधारवा उपर तेस्रणे विशेष लक्ष आप्यु; कारणके ज्ञान ए शक्ति छे खरी, पण चारित्र वा सद्वर्तन ए विशेष शक्ति छे. ज्ञान होय पण हैयुं हेताळ न होय, हुंशियारी होय पण रुडां आचरण न होय, चतुराई होय पण बीजा तरफ सारी लागणी न होय, तो ते हुंशियारी, चतुराई, अने बुद्धि तेना सायना बीजा सद्गुण सिवाय जो के गमत आपे अने वखते बोधदायक थई पडे, तोपण
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