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________________ (१०९) माता तुल्य गणाय छे, अने देशनी अमूल्य सेवा बजावे छे. बळद अने पाडा खेतीवाडीना काममां आवे छे अने हिंदुस्ताननी खेतीनी मोटी विशाळ दोलत छे. हिंदुस्थाननी वस्तीनो पोणो भाग खेतीवाडी उपरज नभे छे, माटे आ जानवरो आपणी ने आपणा देशनी अमूल्य नोकरी बजावे छे; ने तेनो बदलो हिसाबमां लेईए तो आपणा स्वार्थना प्रमाणमां आपणे तेमनो प्रतिउपकार कदीपण वाळी शकताज नथी. माणसजात मोटाईना लोभमां खोटी फसायेली छे, पण खरं जोतां पशुओना तरफथी जे सुख मळे छे तेनो लेशमात्र पण बदलो आपणे आपता नथी. पशुवध केम अटकाववो. आज कालना अपूर्ण सुधरेला लोको मांसाहार करवो ए महत्वनी वात माने छे, तथा ते पुष्टि वधारे छे तथा शरीरने कौवत आपे छे, तेम केटलाक दाक्तरो तथा विद्वानो खुल्ली रीते जाहेर करे छ; पण जो तेओ दुरअंदेशीथी जोशे तो पूर्ण रीते साबित थाय छे, के माणसजातने मांसाहार बीलकुल उचित नथी. एक ज्ञानवंत कदी हाथ पण अडाडशे नहीं. माणसना शरीरना अवयवो जेवा के दांत, पेट, आंतरडां विगेरेनो बारीक तपास करीए छीए, त्यारे वनस्पति खोराक घणी सहेलाईथी पाचन थाय छे अने तेथी पूर्ण तनदुरस्ती सचवाय छे; मांसाहार घणा लांबा वखते थोडो घणो पाचन थाय छे अने तेना परिणाम रुप घणां दरद उत्पन्न थाय छे, एम मालुम पडे छे. जे लोको मांसाहारथी शक्ति वधे छे, एम माने छे तेमना करतां सादो खोराक खानारी दुनियानी प्रजाना सामान्य दाखला तपासएि, त्यारे वनस्पति खोराक तथा फळफळादि शीवाय बे तृतीयांश भाग शोखनी खातर बीजा पदार्थ खाय छे. आर्य महात्माओए वनस्पति खोराक शा माटे पसंद करेलो छे, तेनो ज्यारे तपास करीए छोए त्यारे परिपूर्ण साबीत थाय छे के मनोवृत्ति, शरीरबळ अने मननी स्थिरता, निर्विकारिक खाराक खावाथी नीति तथा सदाचरण हमेशने माटे सचवाय छे, तेथी ईश्वरभक्तिमां सहेलाईथी दोरी शकाय छे. “Habit is second to nature" 'जैसी करणी तैसी पार उतरणी.' आपणा अल्प सुखने सारु मांसाहारिक पदार्थ केवी रीते प्राप्त करीए छीए तेनो ज्यारे ख्याल करीए छीए त्यारे निरपराधी नबळां जानवरोने निर्दय रीते मारी नांखी, तेनुं सारं अथवा नरतुं मांस एक अज्ञान रसोईयाना हाथथी रंधाईने खावाना उपयोगमा लेवामां आवे छे; पण जो तेनो पूरेपूरो बारीक विचार उपयोग करनार करशे, तो 'एक वखत तो तेनुं मन आवो भ्रष्टाहार करवा कदी कबूल करशे नहीं. आजकाल आपणा हजारो हिंदुभाईओ तथा जैनो कॉड लविर ऑईल तथा बीफ ज्युस 'पोतानां दर्द तथा अशक्ति निवारण करवाने पीए छे, पण तेओ हजु मोहरुपी अघोर निद्रामां 'फसायेला छे; जेओ आ देह क्षणभंगुर छे, आ सुख अल्प छे तथा आ कृतिनुं परिणाम छेवटे शुं आवशे, ते जाणता छतां आवां कृत्यो करवामां मची रहे छे, ते कोई दिवस जैन अगर हिंदु कही शकाय नहीं. अमेरिका तथा विलायतमां हजारो माणस सुख तथा दुःखना वखते मांसाहार तो करता नथी, पण चामडाना जोडा पण पहेरता नथी; माटे साबित थाय छे के जेम जेम सायन्समां प्रोग्रेस करे छे, तेम तेम तेवी चीजो मेली निरपराधी जानवरोनी दयानी बूज जाणी, बीजी योजनाओ रची सुख तथा धर्म साधे छे. दुनियाना क्षणिक सुखमां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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