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________________ (६५) खरेखर ओ भव कर्तव्यकर्मसु (duty) लीलो है. "दस दिवता मणुअ जम्मे." सिद्धांतरे विषं मनुष्यरो जन्म मिळणो दश दृष्टांतें दुल्लभ बखाण्यो . ओ भव कुछना कुछ करणासारं कमायो हे. कर्तव्य कर्मरी ऊंची कल्पना ( high ideal of duty ) आईज है ओर इणने जमानारी अगर सेंसाररी ऊंची कल्पना केवो तोबी मुलाजो नहीं. __ जमानारी अगर सेंसाररी ऊंची कल्पना ( high ideal of life ) इतरे मांय तीन अंतर्कल्पना समावे हे. तथा कायदारे भाषामांय केणो हुवे तो तीन पोट कल्पना समावे हे. जित्रे भूमिति शास्त्रमें (Geometry ) अनेक बिंदु मिळने एक रेव हुवे अगर सामान्य भाषामांय केणो हुवे तो अनेक पाणीरा बिंदूसु तळाव हुवे तिणमुजब म्हे अबे आपने बतायूंला वे तीन अंगभूत अंतर्कल्पना मिळने 'सेंसाररी एक ऊंची कल्पना ' (High ideal of life: high ideal of duty ) अगर ' कर्तव्यकर्मरी एक ऊंची कल्पना ' हुवे हे. पेली अंगभूत अंतर्कल्पना आ जाण लेणी चाइजे के तुमो फगत तुमारा वास्तेईज जनम लीनो नहीं है, तुमारा परवाररे वास्तेईज केवळ लीनो नहीं. तो तुमारा देसवास्ते पिण लीनो हे. भण्योडो आदमी 'मोटामाय छोटारो समावेश हुवे पण छोटामांय मोटारो हुवे नहीं' इण भूमिति शास्त्रराप्रत्यक्षप्रमाणनें (axiom) अच्छीतरे जाणे हे. उणने मालम हे के म्हारा जातभायांमांयलो म्हे एक हुं, ओर म्हे जो उणारी सेवाचाकरी करूंला तो म्हे म्हारी पोतारी सेवा कयामाफक हे. जठे आदमी आपरो ओर आपरे परवाररोईज बिचार तदन करे हे, उठे वा ओर किणरी सेवा करे नहीं. पण जठे आदमी आपणा देशभायांरी अगर साधम्मिभायारी सेवा करे हे उठे ऊ दूजारी, आपरी तथा आपरे परवाररी पिण सेवा करेज हे कारण पेलांमांय दूजा समावे हे.. 'संसाररी ऊंची कल्पना रे ( high ideal of life ) बारांमाय म्हे आपने तीन अंतर्कल्पनामांयली एक अंतकल्प अच्छीतरेसुं अबे बताय दीनी हे. दूजी अंतर्कल्पना काई हे के देसरी केवो के जातभायांरी केवो के साधमिभायांरी सेवा निष्कपट और बिना पेटा कीनी चाइजे. आ सेवा मुरखरे माफक अगर अंधेरेमाफक करणामें हांसत नहीं. एखादे आदमीरी सेवाचाकरी अपां किस्त्रे करां हां भलां ? जो उण आदमीरो साचो किल्याण करणारी आपणा मन्नमें उमंग हुसी तो तिण आदमीमांय ओगणतुस कित्रा हे तिणरो अपांने पेला बिचार करणो लाजम हे. 'हां स्सा हां स्सा, कांई सां, फलाणचंदजी सारी बांत्यांसुं पुरा वाकबी ओर मुरब्बी हे' इस्त्रे केने तिण आदमीरी झूटी ओर कामणगारी समज करोला कांई? नहीं. ओर झिकी बांत्यां एक सखनने लागु हे वे देसने अगर राष्ट्रने पिण लागु हे. कारण अनेक सखस-अनेक व्यक्ति ( individual )—मिळने एक देश हुवे ओर अनेक देस मिळने एक राष्ट्र ( nation) हुवे हे. एक फ्रेंच लेखक ( Rev. Father Didon ) केवे हे के "गरब ओर धेकसु मच्योडो ओछो स्वदेशाभिमान म्हने पसंत नाही. " कर्तव्यकर्मरी ऊंची धारणा (high conception of duty) कद हुवे हे के जद आपणान्यातरा तथा देसरा ओगणऊपर ओर नबळाईरा कारण ओर कार्यऊपर (cause and effect ) ध्यान देने देसरी के न्यातरी सेबा ठिंबराईसुं तथा अक्कलहुशारीसुं करणारी जोत ( flame ) लखलख झळझळाट करे! एक जर्मन साहेब नांवसुं इरमन्न जैकोबी श्रीआचारांग तथा कल्पसूत्ररो प्राकृतमांयासुं अंग्रेजीमें भाषांतर कीनो हे. इण पुस्तकरा प्रस्तावनामें या साबीत को हे के जैनधर्म बौद्धधर्ममायंसुं निसो नहीं हे. तिणमें ए जर्मन् सिरदार फुर्मावे हे के सिद्धार्थ ओ राजा करके नहीं हुतो तो एक मोटो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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