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रहेवाथी मदद करवा जेवी नहि रहेशे, तो पछी कोमनी उन्नतिनां साधन होवा छतां मेळववानो इलाज हाथमा रहेशे नहि.
हत्रे आ बाबतमां पगलां भरवानी जरूर छे तो ते केवी रीते लेवां अने शुं लेवां ते नक्की करवानी स्वाभाविक फरज पण आपणे माथे आवी पडे छे. आ जाणवा माटे आपणे हालमां अपाती केळवणी, तेनाथी थती असर, तेनाथी धर्मवृत्ति वधे हे अथवा घटे छे अर्थात् आ जींदगी तेमज आवती सुधरवानी आशा रहे छे किंवा नहि, बीजा देशोनो सहवास विगेरे त्राबतो तपासत्री जोईए; कारणके सौथी मोडो उठे तेने पण एक जातनो लाभ मळेछे तेम जैन प्रजा मोडी उठी छे, तोपण बीजाओनुं अवलोकन करी तेनाथी पोताने जोईए तो वडो मेळवी शकशे, अने ते मेळव्या पछी आपणुं भविष्यनुं कर्तव्य केवी रीते गोठवतुं तेनो ख्याल बधारे सारो आवी शकशे.
ऊपर मुजब बिचार्या बाद हवे आपणे कोमनी उन्नति केवा प्रकारनी जोईए छे ने जोवानुं छे. कोईपण प्रकारे जो उन्नति करवी छे तो ते हंमेशां खरी बाजु तरफ होवी जोईए. इतिहासनां पानां तरफ नजर करीए तो जुदाजुदा देशनी प्रजाओ आगळ वती जोवामां आवेछे, तेम कोई ठेकाणे उन्नति एकतरफी थती जणाय है. खरूं जोतां तो जे बडे आपणे संसारिक, मानसिक अने धार्मिक ए त्रणे दिशामां आगळ वधी शकीए तेनेज खरी उन्नतिनो रस्तो कही शकाशे घणा दाखलाओ एवा पण जोवामां आवे छे, के एक प्रजा एक बाजुथी आगळ चडती जायछे, त्यारे बीजी बाजुथी पाछळ पडती जायछे. दाखला तरीके ते एक जमानामां साहित्यना बिषयमा घणी आगळ वधती जायछे, त्यारे बीजी तरफथी स्वतंत्रवृत्ति, जातिअभिमान अने वेपारना संबंधमां पाछळ पडती जणाय छे; अने त्यांनो अमीरवर्ग पोतानी पछी भूली जई खुशामतियो थई जतो नजरे आवे छे. थोडा एवा पण दाखला मळी आवे छे के जेओ दोलत अथवा सत्ताबळथी पोते वणा आगळ वधे जायछे, त्यारे तेमनाज जातभाईओनी मोटी संख्या दुःख अने अज्ञानतामां डुवती जायछे; बीजा शब्दोमां एक तरफथी थोडाओनो मोजशोख अने दोलत अने बीजी तरफथी मोटी संख्यानी अज्ञानता, कंगाळीअत अने भूखमरानी स्थिति नजरे पडेछे. आपणने जे उन्नति जोईए छे ते आवी एकतरफी नहीं परंतु सामान्य कोम समस्तनी जोईए छे.
तो पछी उन्नतिनी शरुआत क्यां करवी ? उन्नति करवामां शरुआत करी जोईए तेम तेनी भविष्यनी नेम पण होवी जोईए. माणसजाते पोतानी केळवणी क्यांथी शरु करी अने तेनी छेनी नेम क्यां हे ? दुनियांना इतिहासमां आ बाबतमां आपण अनुमान सिवाय कांई साधन मळी आवतुं नथी, परंतु आपणां जैन साहित्योमांधी प्रथमनी बाबत ऊपर केटलुंक अजवालुं पडेछे, एटले आपणा प्रथम तीर्थकर श्री रुषभदेव स्वामी आपणा धर्मना प्रथम स्थापक हता एटलुंज नहीं, पण ते उपरांत माणसजातनी विद्याकळाओनो पायो नांखनार पण तेओ पोतेज हता एम स्पष्ट वर्णवेल्लुं जोवामां आवेछे. पाश्चिम प्रजाओनो मत पण आ सिद्धांतने पुष्टि आपेछे. ते मत मुजब पण प्राथमिक मनुष्य प्राणी विद्या अने गुणमां संपन्न हतो अने तेनी कुदरती बुद्धि हालना उंचामां उंचा केळवाएला मगज करतां विशेष हती. रोबर्ट साउथ नामनो एक इंग्रेजी धर्मगुरु आ वाचत एटले सुधी वधीने कहे छे, के एक कबाट अने तेनी कूंचीनुं काणुं ए बेना महत्वमां जेटलो अंतर
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