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मारवाड़ का इतिहास समाप्त हो चली । यह देख किले वालों ने एक उपाय सोच निकाला । उन्होंने खोखर केसरखाँ को और एक गहलोत वीर को जयापा को छल से मार डालने के लिये नियत किया। इस पर वे दोनों बनियों का सा वेश बना कर आपस में लड़तेझगड़ते जयापा के शिविर में जा पहुँचे । उस समय वह स्नान कर रहा था । परन्तु उनको लड़ता हुआ देख जिस समय उसने कारण जानने के लिये उन्हें अपने पास बुलाया, उस समय मौका पाकर उन्होंने उसे मार डाला । इस घटना से मरहटा-सेना में गड़बड़ मच गई । इसी समय मौके की फिराक में बैठी हुई राठोड़-सेना ने किले से निकल उन पर आक्रमण कर दिया । इससे एक बार तो मरहटों के पैर उखड़ गए और वे किले का घेरा छोड़ भाग खड़े हुए । परन्तु शीघ्र ही जयापा के भाई दत्ताजी ने बिखरी हुई मरहटा सेना को एकत्रित कर फिर से नागोर पर घेरा डालने का प्रबन्ध किया । जनकोजी ने भी इस काम में योग देना अपना कर्तव्य समझा । यह घटना वि० सं० १८१२ ( ई० स० १७५५) की है। इसकी सूचना मिलते
१. ख्यातों से ज्ञात होता है कि उस समय तक जोधपुर, जालोर, नागोर, और डीडवाने को
छोड़ मारवाड़ राज्य के बाकी के सारे ही प्रदेशों पर रामसिंहजी का अधिकार हो गया था । यह देख महाराजा विजयसिंहजी ने विजयभारती नामक पुरुष को महाराना राजसिंहजी (द्वितीय) के पास भेजा और उनसे जयापा से संधि करवा देने का कहलाया। इस पर उनकी तरफ से सलूंबर का रावत जैतसिंह इस कार्य के लिये नागोर आया । परंतु मरहटों ने उसका संधि का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया । इसी से महाराज विजयसिंहजी के सरदारों को जयापा के साथ कूटनीति का व्यवहार करना पड़ा। इस घटना से क्रुद्ध होकर मरहटों ने किले के बाहर ठहरे हुए उक्त रावत के शिविर पर हमला कर उसे और महाराज
के सेवक विजयभारती को भी मार डाला। २. मारवाड़ में इस विषय की यह कहावत प्रचलित है:--
'खोखर बड़ो खुराकी, खाय ग्यो पापा सरीखो डाकी' जयापा के स्मारक में जो छतरी बनाई गई थी वह नागोर से तीन मील दक्षिण में विद्यमान है । ख्यातों से ज्ञात होता है कि जयापा को मारने वाले दोनों गुप्तचर मरहटों द्वारा उसी समय मार डाले गए थे।
३. यह जयापा का पुत्र था। ४. ग्रांट डफ की 'हिस्ट्री ऑफ मरहटाज़' में इस घटना का समय ई० स० १७५६ ( वि० सं०
१८१६ ) लिखा है । (परंतु साथ ही उक्त इतिहास के भा० १, पृ० ५१४ की टिप्पणी १ में इस घटना के दिए गए समय पर सन्देह प्रकट किया है।) उसमें यह भी लिखा है
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