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________________ मारवाड़ का इतिहास इस झगड़े से छुट्टी पाकर महाराजा बखतसिंहजी ने जयपुर की तरफ़ यात्रा की । इनके सींध ली' स्थान पर पहुँचने पर जयपुर-नरेश महाराजा माधवसिंहजी भी सामने आकर इनसे मिले । महाराजा बखतसिंहजी का विचार था कि यदि जयपुर-नरेश साथ देने को तैयार हों, तो मरहटों पर चढ़ा कर उन्हें मालवे से भगा दिया जाय । परंतु इस विचार को कार्य-रूप में परिणत करने के पूर्व, वहीं पर, यह बीमार हो गए और वि० सं० १८०६ की भादों सुदी १३ ( ई० सन् १७५२ की २१ सितंबर ) को उसी स्थान पर इनका स्वर्गवास हो गया । महाराजा बखतसिंहजी वीर, बुद्धिमान् , नीतिज्ञ और कार्य-कुशल शासक थे । जोधपुर लेने के पूर्व नागोर का प्रबंध भी इन्होंने बड़ी खूबी के साथ किया था। साथ ही वहाँ के किले को सुदृढ़ और सुसजित करने में भी इन्होंने कोई कसर उठा न रक्खी थी । यद्यपि यह जोधपुर की गद्दी पर बैठने के १३ मास बाद ही स्वर्गवासी हो गए थे, तथापि इन्होंने यहाँ के प्रबंध में भी बहुत कुछ सुधार किए थे । मुरलीमनोहरजी के मंदिर के सामने की और नौ चौकियों की घनी बस्ती के कुछ मकानों और दुकानों को गिरवाकर वहाँ पर नगर-वासियों के स्वास्थ्य के लिये चौक बनवा दिए थे; और गिराए गए १. यह स्थान जयपुर-राज्य में है । २. ख्यातों में लिखा है कि महाराजा बखतसिंहजी जयपुर-नरेश महाराजा माधवसिंहजी को साथ लेकर मरहटों पर चढ़ाई करना चाहते थे। मेवाड़-नरेश महाराणा जगतसिंहजी द्वितीय की भी इस कार्य में सम्मति थी। परंतु जगतसिंहजी का स्वर्गवास तो इनके जोधपुर लेने के पहले ही हो गया, और माधवसिंहजी को इस कार्य में साथ देने का साहस न हुआ । साथ ही उन (माधवसिंहजी) को यह भय हुआ कि बखतसिंहजी के जयपुर की तरफ आने से कहीं उनके राज्य में भी कोई बखेड़ा न उठ खड़ा हो । इसलिये उन्होंने अपनी रानी से, जो किशनगढ़-नरेश की कन्या होने के कारण महाराज की भतीजी थी, कहकर महाराज को उससे मिलने के लिये बुलवाया, और वहाँ पर इन्हें एक ऐसा फूलों का हार पहनवाया, जिसके विषाक्त स्पर्श से यह शीघ्र ही बीमार होकर स्वर्गवासी हो गए। वि० सं० १८२२ (ई. सन् १७६५) में इनके राजकुमार महाराजा विजयसिंहजी ने उक्त स्थान पर इनका एक स्मारक बनवाया था। यह अब तक विद्यमान है। ३. इन्होंने महाराजा बहादुरसिंहजी को किशनगढ़ पर अधिकार करने में सहायता दी थी। इसीसे बादशाह अहमदशाह के मदद देने पर भी उनके बड़े भ्राता सामंतसिंहजी वहाँ पर अधिकार करने में सफल न होसके । ३६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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