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________________ महाराजा अभयसिंहजी . शाही सेना की मदद करने के कारण मल्हार-राव होल्कर महाराज से अप्रसन्न था । इसी से वि० सं० १७६३ ( ई० सन् १७३६ ) में उसने कंतजी के साथ गुजरात से आगे बढ़ मारवाड़ पर चढ़ाई की' । यद्यपि कुछ दिन तक वह यहाँ के जालोर, सोजत, बीलाड़ा, मेड़ता और जोधपुर आदि प्रांतों में लूट-खसोट करता रहा, तथापि महाराज के सरदारों और मुसाहिबों ने उसे शीघ्र ही लौट जाने पर बाध्य करदिया । महाराज भी इस घटना की सूचना पाकर दिल्ली से रवाना होनेवाले थे, परन्तु इतने ही में होल्कर के लौट जाने का समाचार मिल जाने से इन्होंने अपना विचार स्थगित कर दिया । ___ इसके बाद बादशाह ने दरबारियों के कहने-सुनने से वि० सं० १७६३ ( ई० सन् १७३७) में, गुजरात का सूबा मोमीनखाँ को दे दियो । परन्तु जब उसने उक्त प्रांत पर अधिकार करने में अपने को असमर्थ पाया, तब रंगोजी को, खास अहमदाबाद नगर, उसके आस-पास का प्रदेश और कैंबे (खभात ) बंदर को छोड़कर दिया। इसके बाद सोहराब ने बुरहानुल्मुल्क से कह-सुनकर दुबारा उसे अपने नाम लिखवालिया । यह बात रत्नसिंह को बुरी लगी । इससे उसने इधर-उधर से सहायता लेकर उस पर चढ़ाई कर दी । परंतु सोहराबखाँ के पड़ाव के पास पहुँच उसने उससे कहलाया कि यदि वह बादशाह की तरफ से महाराज के पक्ष में अंतिम आज्ञा आ जाने पर उक्त स्थान को खाली कर देने का वादा कर ले, तो आपस में संधि हो सकती है। यह बात सोहराबखाँ को मंजूर न हुई । इस पर दोनों तरफ से युद्ध की तैयारी होने लगी । परंतु इसके दूसरे ही दिन रत्नसिंह ने नैश-आक्रमण कर उसकी सेना को भगा दिया । सोहराबखाँ स्वयं भी घायल हो जाने के कारण बाद को शीघ्र ही मर गया । (बाँबे गजेटियर, भा० १, ख० १, पृ० ३१५-३१६ )। वि० सं० १७६२ की आश्विन बदी २ के एक पत्र में राजाधिराज बखतसिंहजी के फिर से खरबूज़ी प्रांत पर चढ़ाई करने का उल्लेख मिलता है । १. बाँबे गजेटियर, भा० १, ख० १, पृ० ३१७ | २. ग्रांटडफ की 'हिस्ट्री ऑफ मरहटाज़' में इस घटना का समय ई. सन् १७३५ लिखा है । (देखो भा० १, पृ० ३६०)। मारवाड़ की ख्यातों में लिखा है कि इसी समय राजाधिराज बखतसिंहजी ने जाकर गोपालपुरे की गढ़ी को घेर लिया । उस समय बीकानेर नरेश ज़ोरावरसिंहजी उसी में ठहरे हुए थे। इसी बीच दिल्ली से महाराज की आज्ञा आ जाने के कारण जोधपुर की फ़ौज का एक दस्ता भी राजाधिराज की मदद में वहाँ जा पहुँचा । यह देख बीकारेरवाले घबरा गए और उन्होंने कुछ रुपये और सरहदी इलाका राजाधिराज को देकर उनसे संधि कर ली। ३४६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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