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________________ महाराजा अभयसिंहजी इसी वर्ष के भादों ( ई० सन् १७३३ के अगस्त ) में राजाधिराज बखतसिंहजी के और बीकानेर-नरेश सुजानसिंहजी के बीच एक सरहदी मामले पर झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इससे बखतसिंहजी ने बीकानेर पर चढ़ाई कर दी । आश्विन सुदी में महाराज भी अपने दल-बल-सहित उनकी सहायता को वहाँ जा पहुचे । कुछ दिन तक तो दोनों तरफ़ से लड़ाई होती रही । परंतु अन्त में फागुन के महीने में लोगों ने बीच में पड़ आपस में मेल करवा दिया । फिर भी बीकानेर के कुछ सरहदी प्रदेशों पर वि० सं० १७९२ ( ई० सन् १७३५ ) तक जोधपुरवालों का ही अधिकार बना रही। वि० सं० १७९१ के ज्येष्ठ (ई० सन् १७३४ की मई ) में महाराज नागोर, पुष्कर और अजमेर होते हुए मेवाड़ की तरफ़ चले । हुरडे में इन्होंने जयपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर और किशनगढ़ के नरेशों से मिलकर एक शानदार दरबार पर बखतसिंहजी का गद्दी बैठना लिख दिया है । यह ठीक नहीं है । 'ग्रांट डफ की हिस्ट्री ऑफु मरहटाज़' में लिखा है कि ई० सन् १७३२ (वि. सं० १७८६) में पीलाजी का ज्येष्ठ पुत्र धम्माजी सोनगढ़ से रवाना हुआ, और उसने गुजरात के पूर्व की तरफ के बहुत से प्रदेशों पर अधिकार कर जोधपुर तक चढ़ाई की । इसीसे महाराज अभयसिंहजी को गुजरात से लौटकर मारवाड़ में आना पड़ा । ( देखो भा० १, पृ० ३८१)। १. 'बीकानेर की तवारीख' में महाराज का स्वयं वहाँ न जाकर सेना भेजना ही लिखा है । उसमें यह भी लिखा है कि इस युद्ध में बीकानेर के राजकुमार ज़ोरावरसिंहजी ने अच्छी वीरता दिखाई थी। इसी से जोधपुर की फ़ौज को ( पूरी ) सफलता नहीं हुई । ( देखो पृ० १६२)। २. यह बात बीकानेर के राजकीय इतिहास से भी प्रकट होती है । ( देखो पृ० १६४) महाराज के, अपने शाही दरबार में रहनेवाले वकील के नाम लिखे, वि० सं० १७६० की मँगसिर सुदी ७ के, पत्र में लिखा है- "तुमने बादशाह के कथनानुसार शीघ्र ही हमें फिर अहमदाबाद जाने के बारे में लिखा, सो ज्ञात हुआ। बीकानेर का शहर हमारे अधिकार में आ गया है । किलेवाले अभी लड़ रहे हैं ।" इसी वर्ष की फागुन सुदी १० के नागोर में लिखे महाराज के पत्र से प्रकट होता है कि बीकानेरवालों ने १२ लाख रुपये देने और समय-समय पर सेवा में हाज़िर रहने का वादा कर महाराज से संधि कर ली थी । इन १२ लाख में से ८ लाख तो नकद देने का इकरार था और ४ लाख के एवज़ में खरबूज़ी और सारूडा के प्रांत देने तय हुए थे। ३. उस समय ये सब नरेश वहाँ आ गए थे। ३४७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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