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________________ मारवाड़ का इतिहास का शिविर केवल एक कोस की दूरी पर था। इससे रात होते ही वह अपनी तोपों को महाराज की सेना की पंक्ति की सीध में लगवाकर उस पर गोले बरसाने लगा। इसके बाद प्रातःकाल होने पर उसने अपनी सेना को युद्ध के लिये तैयार होने की आज्ञा दी । परन्तु रात की घटना से महाराज को अपने अधिकृत-स्थान की अनुपयोगिता सिद्ध हो चुकी थी । इसीसे यह अपनी सेना में आए हुए गुजरातियों की सलाह से अपनी राठोड़-वाहिनी को लेकर दो-ढाई कोस पीछे के सुरक्षित स्थान ( खानपर) में चले आए । यह स्थान वास्तव में ही सैनिक दृष्टि से बड़ा उपयोगी था । इसी से यहाँ पर नवीन मोरचे बनवाने की आज्ञा दी गई । इसके साथ ही इन्होंने कुछ चुने हुए सवारों को साबरमती नदी के उस पार के बैहरामपुर और बड़े नायनपुर पर अधिकार करने के लिये भेज दिया; क्योंकि उक्त स्थान अहमदाबाद पर गोलाबारी करने के लिये बड़े उपयोगी थे । महाराज की सैन्य के इस स्थान-परिवर्तन की सूचना सखुलंदखाँ ( मुबारिजुलमुल्क ) को सायंकाल के समय मिली थी । इसलिये उसने रात्रि में होनेवाले आक्रमण से बचने के लिये अपने सैनिकों को तत्काल समुचित स्थानों पर नियत कर दिया । इसके बाद प्रातःकाल होते ही उसने शाही बाग के सामने पहुँच अपने मोरचे लगवा दिए । इसके साथ ही उसने अपनी सेना का एक भाग, मय एक तोपखाने के, नगर की रक्षा के लिये भेज दिया । इन कामों से निपटकर उसने फिर एक बार महाराज की सेना पर गोलबारी शुरू की । इसके बाद जैसे ही महाराज की सेना के मोरचे यथास्थान लग चुके, वैसे ही उसने शत्रु-सेना की तोपों का जवाब देने के साथ-ही-साथ अहमदाबाद नगर और वहाँ के किले पर भी गोले बरसाने शुरू किए । राठोड़-वाहिनी का मोरचा ऊँचे स्थान पर होने के कारण इनके गोलों की चोट कारगर होती थी । यह देख दूसरे दिन ( वि० सं० १७७ की कार्तिक बदी ५ ) ( ई० स० १७३० की २० अक्टोबर ) को सरबुलंद ने आगे बढ़ महाराज की सेना पर आक्रमण कर दिया । यद्यपि इस युद्ध में उसके मुसलमान सैनिकों ने बड़ी वीरता दिखलाई, और एक बार खानपुर में घुसकर उसके एक भाग पर अधिकार भी कर लिया, तथापि अन्त में महाराज के तोपखाने और है, तो नहीं देता है । पावागढ़ चिमनाजी के कब्जे में है । चाँपानेर का किला कंठाजी के पास है । इसके अलावा ये लोग देश में चौथ, देशमुखी और पेशकशी के लेने के साथ ही कुछ स्थानों में दोबस्त (धर-पकड़) भी करते रहते हैं। ३३८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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