SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १७८० के आषाढ़ ( ई० स० १७२३ के जून ) में शाही सेना के अजमेर पहुँचने पर ऊदावत वीर अमरसिंह ने किले का आश्रय लेकर उसका सामना किया । कुछ दिनों तक तो बराबर युद्ध होता रहा, परन्तु इसके बाद आँबेर-नरेश जयसिंहजी ने बीच में पड़ उक्त किला शाही सेना को दिलवा दियो, और बादशाह को संधि का विश्वास कराने के लिये महाराजकुमार अभयसिंहजी को दिल्ली भिजवा दिया । बादशाह ने भी महाराजकुमार के वहाँ ( दिल्ली ) पहुँचने पर उनकी बड़ी. स्वातिर की। इसके बाद महाराज स्वयं, जो इन दिनों मेड़ते के मुकाम पर थे, जोधपुर लौट आएँ ? १. 'राजरूपक' में सावन में फ़ौज का आना और ४ मास तक युद्ध होना लिखा है । ( देखो पृ० २३८)। वि० सं० १७७६ (चैत्रादि १७८०) की वैशाख सुदी १५ के बूंदी के, रावराजा बुधसिंहजी के लिखे, महाराज के नाम के, पत्र से प्रकट होता है कि उस समय उन्हों ने भी कुछ सेना महाराज की सहायता के लिये भेजने का प्रबंध किया था। २. अजितोदय, सर्ग ३०, श्लो० ५३-६५ । परन्तु 'राजरूपक' में जयसिंहजी के बीच में पड़ने का उल्लेख नहीं है । ( देखो पृ० २३६ )। कर्नल टॉड के राजस्थान के इतिहास से भी इसकी पुष्टि होती है । उसमें लिखा है कि ४ महीने के युद्ध के बाद अजमेर शाही अमीरों के हवाले किया गया । परंतु उसमें किले का नाम तारागढ़ लिखा है । ( देखो भा० २, पृ० १०२८)। 'लेटर मुग़ल्स' में मीराते वारिदात' के आधार पर लिखा है कि यद्यपि इस किले में केवल ४०० योद्धा थे, तथापि आपस की बातचीत के बाद ही यह किला शही लश्कर को सौंपा गया था और किलेवाले अपने-अपने शस्त्र लिए निशान उड़ाते और नक्कारा बजाते हुए किले से बाहर निकले थे। (देखो भा० २ पृ० ११४ का फुटनोट*) ख्यातों में लिखा है कि इस अवसर पर महाराजा अजितसिंहजी को १ अजमेर, २ टोडा, ३ भिणाय, ४ केकड़ी, ५ परबतसर, ६ मारोठ, ७ हरसोर, ८ भैसेर, ६ तोसीणा, १० वाहाल, ११ बवाल, १२ साँभर, १३ नागोर और १४ डीडवाने के परगनों का अधिकार छोड़ देना पड़ा था। ३. 'राजरूपक' में मँगसिर सुदी ७ को इनका दिल्ली को रवाना होना लिखा है । ) देखो पृ० २४५)। ४, अजितोदय, सर्ग ३०, श्लो० ६६-८५ । उसमें यह भी लिखा है कि जिस समय यवन-सेना रीयां में थी, उस समय महाराज ने जयसिंहजी के आग्रह से संधिकर महाराजकुमार को बादशाह के पास जाने की आज्ञा दी थी । ५. अजितोदय, सर्ग ३१, श्लो० १। ३२६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy