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मारवाड़ का इतिहास
कुतुबुल्मुल्क का खयाल था कि आँबेर-नरेश राजा जयसिंहजी भी उसके विरुद्ध बादशाह को भड़काते रहते हैं । इससे उसने फ़र्रुखसियर पर दबाव डालकर उन्हें अपने देश को लौट जाने की आज्ञा दिलवा दी' ।
इसी बीच सैयद हुसैन अलीखाँ (अमीरुल्उमरा ) अपनी सेना लेकर दक्षिण से दिल्ली आ पहुँचा । अतः इन लोगों ने स्थायी संधि कर लेने के लिये फिर एकबार बादशाह से बातचीत शुरू की । परंतु अंत में फ़र्रुखसियर की अव्यवस्थितचित्तता से सैयदों का और महाराज का विश्वास उस पर से बिलकुल ही उठ गया । इसलिये फागुन सुदी ६ ( ई० सन् १७१६ की १७ फरवरी) को इन्होंने किले पर अधिकार कर लिया । यह देख फ़र्रुखसियर ज़नाने में घुस गया । यद्यपि इन लोगों ने उसे बाहर आकर मामला तय कर लेने के लिये कई बार कहलाया, तथापि उसने इनकी बात पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। इससे क्रुद्ध होकर इन लोगों ने दूसरे ही दिन रफीउद्दरजात को कैद से निकालकर तख़्त पर बिठा दियाँ और फ़र्रुखसियर को बनाने में से पकड़वाकर कैद कर लियाँ ।
१. 'लेटर मुगल्स' भा• १, पृ. ३७६ और अजितोदय, सर्ग २७, श्लो॰ ३७ और ४० । २. अजितोदय, सर्ग ३७, श्लो० १६ । ३. 'हदीकतुल्यकालीम' में ८ रबीउल आखीर के बदले ८ रबीउल अव्वल लिखा है । (देखो
पृ० १३४ ) यह ठीक नहीं है । ४. अजितोदय, सर्ग २७ श्लो० ४१-४७ । ५. अजितोदय, सर्ग २७ श्लो. ४८ और ५१ । यह बहादुरशाह का पौत्र और रफ़ीउश्शान का
पुत्र था। 'अजितोदय' में लिखा है कि मुगल गाज़िउद्दीन ने एकबार फर्रुखसियर को छुड़वाने की चेष्टा की थी । परन्तु हुसैनअलीखाँ ने उसे नगर के पूर्वी द्वार के पास हराकर भगा दिया । ( देखो सर्ग २७, श्लो• ४६-५०) इसकी पुष्टि 'लेटर मुगल्स' से भी होती है । ( देखो भा० १. पृ. ३८६)। ६. रफ़ीउद्दरजात को तख्त पर बिठाते समय उसका एक हाथ कुतुबुल्मुल्क ने और दूसरा महा
राज अजितसिंहजी ने पकड़ा था । ( देखो लेटर मुगल्स, भा. १, पृ० ३८६ )। ७. वि० सं० १७७५ (चैत्रादि १७७६ ) की ज्येष्ठ बदी ११ के महाराज के सिकदार दयाल
दास के नाम के पत्र में लिखा है:-- बादशाह फर्रुखसियर ने हमें अपनी सहायता के लिये यहाँ बुलवाया था । परन्तु हमारे यहाँ पहुँचने पर जयसिंहजी के कहने-सुनने से वह हमसे नाराज़ हो गया । इस पर हमने और नवाब अब्दुल्लाखा ने हसनअली को दक्षिण से यहाँ बुलवा लिया । उसके ( १७७५ की) फागुन बदी १४ को
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