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________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १७७३ की माघ सुदि १२ ( ई० स० १७१७ की १३ जनवरी) को बादशाह ने महाराज को शाही खिलअत, जड़ाऊ सरपेच, जड़ाऊ दस्तारबंद, जड़ाऊ कटार और सोने के साज़ का हाथी दियो । इसके बाद फागुन ( फरवरी ) में उस ( बादशाह ) ने इन्हें नागोर का परगना, जो उस समय अजमेर की सूबेदारी में था, जागीर में देदियो । ___ अगले वर्ष महाराज ने गुजरात में दौरा करते समय द्वारका की यात्रा की, और मार्ग में हलवद के झाला की कूटनीति से क्रुद्ध हो उसे दंड दिया । इसके बाद यह अहमदाबाद लौट आए । इसी बीच हरिसिंह ने कर्माखेड़ी की गढ़ी पर आक्रमण कर दलथंभन और दुर्जनसिंह को मार डाला । __मुसलमानों के स्वेच्छाचार से नफ़रत होने के कारण महाराज अपने अधिकृतस्थानों में उनकी स्वच्छंदताओं को दबाए रखते थे। इसी से वि० सं० १७७४ ( ई० सन् १७१७ ) में इस प्रकार की शिकायतों से नाराज होकर बादशाह ने गुजरात का सूबा शम्सामुद्दौला खाँदौराँ नसरतजंग को सौंप दिया । अतः महाराज लौटकर जोधपुर चले आएं। १. फर्रुखसियर के सने जलूस ४ की १० सफ़र का महाराज के नाम का एक फ़रमान मिला है । इसमें सिक्खों की हार का उल्लेख है । २. फर्रुखसियर के सने जलूस ५ की रबीउल अव्वल का भी महाराज के नाम का एक फ़रमान मिला है । इसमें की तारीख फट गई है। सम्भव है यह १ रविउल अव्वल हो; क्योंकि उसी दिन फ़र्रुखसियर का सने जलूस शुरू हुआ था। इस फरमान में उस अवसर पर बादशाह द्वारा एक खास खिलअत और दो ईराकी घोड़ों का महाराज को दिया जाना लिखा है । ये घोड़े ईरान के बादशाह ने भेजे थे । ३. अजितोदय, सर्ग २३, श्लो. २४-३५ । वहीं पर यह भी लिखा है कि हलवद पहुँचने पर रात्रि में महाराज की सेना के साथ के व्यापारियों के ऊंट चुरा लिए गए । इस पर जब वहाँ के माला-वंशी शासक से शिकायत की गई, तब उसने इस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया । इसलिये महाराज को उससे युद्ध करना पड़ा। अन्त में माला भागकर नवानगर वालों की शरण में चला गया। इस पर पहले तो नवानगरवालों ने भी माला का पक्ष लेकर महाराज का सामना किया। परंतु अन्त में उन्होंने दंड के रुपये देकर महाराज से संधि वली। ४. अजितोदय, सर्ग २४, श्लो०३४-३६ और राजरूपक, पृ० २.१ । ५. बाँबे गजेटियर, भा० १, खंड १, पृ. ३०० और अजितोदय, सर्ग २४ श्लो० ४० । ३१० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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