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________________ मारवाड़ का इतिहास को साथ लेकर, दिल्ली चला गया, और वहाँ पर महाराज के विरुद्ध बादशाह के कान भरने लगा । यह बात महाराज को बहुत बुरी लगी । अतः इन्होंने भाटी अमरसिंह को भेज मोहकमसिंह को मरवा डाल। । इस पर दुर्जनसिंह भागकर क्षण में चला ग ।। इ.के बार महाराज ५ महीने तक मेड़ते में रहे, और वहीं से फिर इन्होंने राव इन्द्रसिंह को अपने पास आने को लिखा । परंतु वह इनके पास न आकर कुछ दिन के लिये सै-दों के पास दिल्ली चला गया। इसी प्रकार किशनगढ़-नरेश राजसिंहजी भी दिल्ली पहुँच बादशाह के पास रहने लगे । ये लोग फ़र्रुखसियर को महाराज के विरुद्ध भड़काते रहते थे । अतः उसने इनके कहने से पहले तो पत्र लिखकर महाराज-कुमार अभयसिंहजी को दरबार में बुलाने की कोशिश की । परन्तु जब महाराज ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया, तब वि० सं० १७७० (ई० सन् १७१३) में उसने सैयद हुसैनअलीखाँ ( अमीरुल उमरा) को जोधपुर पर चढ़ाई करने की आज्ञादी । इसकी सूचना पाते ही महाराज ने खींवसी १. अजितोदय, सर्ग २०, श्लो. २४-२६ । 'लेटरमुग़ल्स' (भा० १, पृ० २८५ का फुटनोट) में मोहकम के स्थान पर मुकंद (और मुल्कन ) लिखा है । 'वीरविनोद' में प्रकाशित मारवाड के इतिहास में इस घटना का वि. सं. १७७० की भादों सदी । (ई. सन १७१३ की २७ अगस्त ? ) को होना लिखा है । 'सेहरुल मुताख़रीन' में जिस राजा मोहकमसिंह का हि • सन् ११३३ की १३ मुहर्रम (वि सं. १७७७ की कार्तिक सुदी १५ ई. सन् १७२. की ३ नवम्बर ) को बादशाह मुहम्मदशाह की सेना को छोड़कर अब्दुल्लाखाँसे मिल जाना, और युद्ध होने पर दूसरे दिन रात को उसकी सेना से भी भाग जाना लिखा है, वह इस मोहकम से भिन्न था; क्योंकि उसके नाम के आगे राव न लगा होकर राजा की उपाधि लगी है । (देखो भा॰ २, पृ. ४४. ) साथ ही 'मग्रासिफल उमरा' में उसे खत्री लिखा है । ( देखो भा० २, पृ० ३३०) । २. अजितोदय, सर्ग २०, श्लो० ३६-३६ । ३. मि० इरविन ने अपने 'लेटर मुगल्स' नामक इतिहास के भा० १ पृ. २८५-२६. में लिखा है कि बहादुरशाह महाराज अजितसिंहजी को दबाने में कृतकार्य न हो सका, और उसके मरते ही शाही तख़्त के लिये मगड़ा उठ खड़ा हुआ । यह देख महाराज ने भी मारवाड़ के आस-पास गो-वध बन्दकर मुसलमानी धर्म के प्रचार को रोक दिया। इसके बाद अजमेर पर भी इन्होंने अपना अधिकार कर लिया। उसी इतिहास में कमवरखाँ के लेख के आधार पर यह भी लिखा है कि इधर तो बादशाह ने हुसेनकुली को जोधपुर पर चढ़ाई करने के लिये भेजा और उधर अनेक प्रलोभनों से पूर्ण पत्र लिखकर महाराज से उसे मार डालने का आग्रह किया । (लेटर मुगल्स, भा० १, पृ० २८६)। ३०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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