SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा श्रजितसिंहजी इसी बीच पंजाब में सिक्खों का उपद्रव उठ खड़ा हुआ । अतः बहादुरशाह ने राजपूताने में फिर से झगड़ा उत्पन्न करना उचित न समझा और वि० १७६७ के आषाढ़ ( ई० सन् १७१० के जून) में, उसने अजमेर पहुँच, महाबतखाँ की मारफ़त महाराज से संधि करली । इसके अनुसार जोधपुर पर भी महाराज का अधिकार स्वीकार कर लिया गयाँ 1 २ १. 'लेटर मुग़ल्स' में पहले-पहल बादशाह को इसकी सूचना का, ई० सन् १७१० की ३० मई को, अजमेर के निकट पहुंचने पर मिलना लिखा है । ( देखो भा० १, • १०४ ) परंतु अन्य गणितज्ञों के अनुसार उस दिन हि • सन् १९२२ की २ रबिउल आखीर को ई० सन् १७१० की २० मई (वि० सं० १७६७ की ज्येष्ठ सुदी ३ ) आती है । सं० २. बादशाह बहादुरशाह ( शाह आलम ) के सने जलूस ४ की १ रविउल आखिर (वि० सं. १७६७ की ज्येष्ठ सुदि २ई सन् १७१० की फ़रमान मिला है । इस में उल्लेख है | साथ ही इस भी किया गया है । महाराज को जोधपुर देने में महाराज को दरबार में · १६ मई ) का एक ख़ास पंजे वाला और मेड़ता खालसे में रखने का पहुँचने पर मनसब देने का वादा इसी साल की ६ रविउल आखिर ( वि० सं० १७६७ की ज्येष्ठ सुदि ११ = ई० स० १७१० की २७ मई) का महाराज के नाम का एक बादशाही फ़रमान और भी मिला है। इस पर भी ख़ास पंजा लगा है । इस 'बहादुरशाह ने महाराज को अपने पास आने के लिये लिखा है । इसी में पहले फ़रमान का हवाला भी है । इसी प्रकार अपने सने जलूस ५ की ५ सफर (वि.सं. १७६८ की चैत्र सुदि ६ = ई० स० १७११ की १४ मार्च) को बादशाह बहादुरशाह ने एक फरमान और भेज कर महाराजा अजितसिंहजी को अपने पास बुलवाया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वि॰ सं॰ १७६६ ( चैत्रादि १७६७ ) की आषाढ़ बदी ११ के, महाराज के, दयालदास के नाम लिखे पत्र में लिखा है कि शाहजादे अज़ीम और महाबतखाँ ने आदमी भेजकर कहलाया था कि अपने भरोसे के पुरुष भेज दो, ताकि आपकी इच्छानुसार संधि करवा दी जाय। इस पर राठोड़ चाँपावत भगवानदास आदि ५ आदमी वहाँ भेजे गए। बादशाह ने हमारी सब बातें स्वीकार कर हमें बुलवाया। इस पर हम भी उससे मिलने को चले । यह देख उसने खानखाना मुहब्बतखाँ और बुंदेला चतुरसाल को हमारी पेशवाई में भेजा । आषाढ़ बदी ११ को इधर हमने डूमाड़े से सवारी की, और उधर बादशाह राजोसी से चला। शाहजादा अज़ीम भी उसके साथ था । पास आने पर शाहजादा पालकी से उतर घोड़े पर सवार हुआ, और हमें अपने साथ ले जाकर बादशाह से मिलाया । उसने भी हमें जोधपुर का अधिकार, १६ हज़ारी जात और १४ हज़ार सवारों का मनसब, घोड़ा, हाथी, खिलअत, दुगदुगी, तलवार, जड़ाऊ सरपेच आदि दिए । ३. इसी समय आँबेर पर भी महाराज जयसिंहजी का स्वत्व मान लिया गया। इसके बाद ये दोनों नरेश बादशाह से मिलकर अपने-अपने देशों को लौट गए, और बादशाह पंजाब की तरफ ३०१ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy