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महाराजा अजितसिंहजी अजितसिंहजी के दल में मिल गया ।
वि० सं० १७६२ ( ई० सन् १७०५ ) में जबरदस्तखों अजमेर और जोधपुर का हाकिम नियत हुआ । उसी समय बादशाह ने दुर्गादास का मारवाड़ में अधिक रहना हानिकारक समझ इधर तो उसे गुजरात जाने के लिये लिख भेजा, और उधर गुजरात के नायब अब्दुलहमीद को उसकी पुरानी जागीर उसे लौटा दने की आज्ञा दी । इसी वर्ष गुजरात के शासक शाहजादे मुहम्मद बेदारबस्तै ने फिर से महाराजा अजितसिंह जी के उपद्रवों को दबाने का प्रयत्न प्रारंभ किया । परन्तु उस समय गुजरात में मरहठों के कारण बड़ी गड़बड़ मची हुई थी । अतः दुर्गादास की सलाह से महाराज ने थिराद
इतने में दुर्गादास ६० मील पर के उझा-उनौवा में पहुँच गया, और वहाँ से पाटन पहुँच अपने कुटुम्ब के साथ थिराद चला आया । यहाँ पर इसने वि० सं० १७५६ (ई• सन् १७०२) में महाराज के साथ होकर फिर मुगल-सैनिकों पर आक्रमण शुरू कर दिए । परन्तु इनमें विशेष सफलता नहीं हुई । ( हिस्ट्री ऑफ़ औरङ्गजेब, भा० ५, पृ० २८८-२८६ )।
उक्त इतिहास में इसी वर्ष महाराज के और दुर्गादास के बीच मनोमालिन्य होना लिखा है। ( देखो भा० ५, पृ० २८६-२६० )।
१. बाँबेगजेटियर, भा० १, खंड १, पृ० २६१-२६२ । २. बाँबेगजेटियर, भा० १, खंड १, पृ० २६३ । ३. यह वि० सं० १७६२ ( ई० सन् १७०५ ) में गुजरात का सूबेदार नियत किया गया था ।
'हिस्ट्री ऑफ औरङ्गजेब' में लिखा है कि इसी वर्ष दुर्गादास ने शाहज़ादे आज़म के द्वारा बादशाह से फिर मेल कर लिया । इसी से वह अपने पुराने मनसब और पाटन की फौजदारी के पद पर नियत किया गया । (देखो भा० ५, पृ० २६१)।
४. वि० सं० १७६२ की कार्तिक वदि १ के बाली मे लिग्खे मुकुन्ददास के पत्र से, जो
बीलाड़े में भगवानदास के नाम भेजा गया था, ज्ञात होता है कि इस अवसर पर औरङ्गज़ेब ने महाराजा अजित सिंहजी को अपने पास बुलवाया था और इन्हें मनसब देने का
वादा भी किया था। ५. बाँबेगजेटियर, भा० १, खंड १, पृ० २६४-२६५ । उसमें यह भी लिखा है कि अन्त में
अजितसिंह ने कुँवर मोहकमसिंह को हराकर जोधपुर पर चढ़ाई की, और उक्त नगर को काज़मबेग के पुत्र जाफरकुली से छीन लिया । इसी बीच दुर्गादास जाकर सूरत के दक्षिण में रहनेवाले कोलियों के साथ छिप गया था। इससे मौका पाकर उसने नायब होकर पाटन को जाते हुए काज़म के पुत्र शाहकुली को मार्ग में ही मार डाला, और इसके बाद चनियार में बीरमगाँव के हाकिम मासुमकली की सेना का भी नाश कर दिया । मासुमकुली स्वयं बड़ी कठिनता से बचकर भाग सका । इस पर सफ़दरखाँ बाबी ने पाटन की हकूमत
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