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________________ महाराजा श्रजितसिंहजी जल-मार्ग से फ़ारस की तरफ़ रवाना कर अपने वीरों के साथ शाही सैनिकों की दृष्टि को बचाता हुआ नर्मदा के पार हो गया, और वहाँ से मालवे के प्रदेशों को लूटता हुआ वि० सं० १७४४ के भादों ( ई० सन् १६८७ के अगस्त ) में मारवाड़ आ पहुँचा । ख्यातों में लिखा है कि दुर्गादास की सलाह के विना ही सरदारों के आग्रह से महाराज प्रकट कर दिए गए थे । इसी से यहाँ पहुँचने पर उसके चित्त में कुछ उदासीनता आ गई । अतः जब वह दक्षिण से लौटकर मारवाड़ में आया, तब उसने स्वयं उपस्थित न होकर केवल पत्र द्वारा ही महाराज को अपने आगमन की सूचना भेज दी । यह देख महाराज ने उसे ले आने के लिये अपना आदमी भेजा । परन्तु वह कुछ दिन के बाद उपस्थित होने की प्रतिज्ञा कर बात को टाल गया । इस पर महाराज स्वयं जाकर दुर्गादास से मिले, और बाद में उसी की सलाह से गूघरोट के पर्वतों में चले गएँ । इसके बाद दुर्गादास ने भी अपने वीरों को एकत्रित कर इधर-उधर के यवन - शासकों को तंग करना शुरू किया । 1 १. अजितोदय में लिखा है कि अकबर एक बार फिर दुर्गादास के साथ मारवाड़ में आने को तैयार हो गया था । परन्तु मार्ग में मुग़ल सैनिकों का सामना हो जाने और युद्ध में मरहटों के पीछे हट जाने से उसने इस विचार को छोड़ दिया । इस युद्ध में दुर्गादास और उसके राजपूत-अनुयायियों ने अच्छी वीरता दिखाई थी। इसके बाद दुर्गादास के मारवाड़ की तरफ लौट जाने पर अकबर जल मार्ग से हबस देश की तरफ चला गया । (देखो सर्ग १३ श्लोक १० ) अन्य इतिहासों से उसका ई० सन् १६८६ के अक्टोबर के अंत (वि० सं० १७४३ के वैशाख ) में पर्शिया के मार्ग से मस्कट की तरफ जाना प्रकट होता है । ‘ममसिरेआलमगीरी' में लिखा है कि हि० सन् १०६४ की १८ सफ़र ( वि० सं० १७४० की फागुन बदी ५ = ई० सन् १६८३ की ६ फरवरी) को ख़ाँजहाँ- बहादुर ने बादशाह को लिखा कि शाहजादा अकबर शंभा के राज्य से निकल जहाज़ द्वारा भाग गया है । ( देखो पृ० २२४ ) परन्तु वास्तव में उस समय कवि कलश और दुर्गादास ने उसे कह सुनकर रोक लिया था । (देखो सरकार-रचित 'हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब', भा० ४, पृ० २८५-२८६ ) । २. उस समय महाराज़ का निवास सिवाने में था । ( देखो अजितग्रन्थ, छंद १५०२ ) । ३. यहीं से कुछ दिन बाद यह सिवाने के किले में चले गए थे । ४. 'हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब' में लिखा है कि दुर्गादास और दुर्जनसाल हाडा ने मिलकर मोहन, रोहतक और रिवाड़ी को लूटा। इसमें बहुत-सा माल इनके हाथ लगा । इसका समाचार मिलने पर दिल्ली में भी गड़बड़ मच गई। यह देख वहाँ के प्रबंधकर्ताओं ने ४,००० सवार इनके मुकाबले को भेजे। जब वे सवार इनसे २० मील के फासले पर पहुँच गए, २७६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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