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________________ मारवाड़ का इतिहास नवम्बर ) को शाही सेनापति ऐतकादखाँ ने इन पर चढ़ाई की । पूँदलोता के पास युद्ध होने पर दोनों तरफ़ के बहुत से वीर मारे गए । इन्हीं में प्रसिद्ध वीर सोनग था । अतः उसकी मृत्यु के उपरांत उसका बड़ा भाई चाँपावत अजबसिंह सेनापति नियत हुआ, और उसने इधर-उधर के गाँवों को लूट डीडवाने पर चढ़ाई की । यह देख वहाँ का शाही हाकिम घबरा गया । परन्तु इसी अवसर पर एक शाही सेना उधर आ पहुँची । अतः ये लोग वहाँ से कराँबी को चले गए, और कुछ वीरों ने जाकर मेड़ते को लूट लिया । शाही सेना भी इनके पीछे लगी चली आती थी। इससे डीगराने में पहुँचते-पहुँचते मनसब के साथ ही जोधपुर लौटा देना भी तय हुआ था। परन्तु इस घटना के २-१ दिन बाद ही सोनग के मर जाने से यवनों ने यह संधि भंग कर दी । 'राजरूपक' में अजमेर के सूबेदार अजीमदीन की मार्फत संधि का प्रस्ताव होना लिखा है । परंतु अजितोदय में अस्तीखा द्वारा संधि का प्रस्ताव किया जाना लिखा है । ( देखो सर्ग ११, श्लो. ३२-३३)। १. 'मासिरेआलमगीरी' पृ० २१४-२१५ । 'राजरूपक' में १७३८ की आसोज सुदी ७ शनिवार को सोनग का एकाएक मर जाना लिखा है। यथाः अठत्रीसै आसोज में, सित सातम सनवार; गौ सोनागिर धाम हरि, नाम करे संसार । द्वितीय आश्विन सुदी ७ को शनिवार था । अतः उस दिन ई० सन् १६८१ की ८ अक्टोबर आती है । 'अजित ग्रन्थ' में भी यही तिथि लिखी है । यथाः सुदी दूजो आसोज, वले सातम सनिवारे; सुत बीठल गो सुरग, सुणे इम हाको सारे । ७२३ 'अजितोदय' में भी इसका एकाएक मरना ही लिखा है । उपर्युक्त ग्रंथों से यह भी पता चलता है कि शाही सेनापतियों ने सोनग की मार से तंग आकर ही संधि करने का निश्चय किया था। परन्तु उसके मरते ही अपना वचन भंग कर दिया । (देखो 'राजरूपक', पृ० ८२ और 'अजितोदय', सर्ग ११, श्लो० ३२-३५)। 'अजित ग्रन्य' से भी इस बात की पुष्टि होती है । ( देखो बन्द ६६४-७२६ )। २. 'मासिरेआलमगीरी' में सोनग के साथ ही अजबसिंह का मरना भी लिखा है। परन्तु 'अजितोदय' में सोनग के बाद अजबसिंह का सेनापति होना लिखा है । ( देखो सर्ग ११, श्लो० ३३)। वह बात — राजरूपक ' से भी प्रकट होती है । ( देखो पृ० ८३) । ३. 'अजित ग्रन्थ' में मकराने के लूटने का उल्लेख है । ( देखो छन्द ७४५)। २७४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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