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________________ महाराजा अजितसिंहजी इस प्रकार जब बहुत से राठोड़ - सरदार मारवाड़ की तरफ़ चले गए, तब पीछे से सावन बदी २ ( १५ जुलाई ) को बादशाह ने दिल्ली के कोतवाल फौलादख़ाँ को से अजितसिंह की चिंता रहने के कारण दुर्गादास, सोनिंग आदि ने महाराणा राजसिंह को अर्ज़ी लिखकर अजित सिंह को अपनी शरण में लेने की प्रार्थना की। उसे स्वीकार करने पर वे अजितसिंह को महाराणा के पास ले गए और महाराणा को सब ज़ेवर सहित एक हाथी, ११ घोड़े, एक तलवार, रत्न-जटित कटार, दस हज़ार दीनार ( चाँदी का सिक्का ) नज़र किए । महाराणा ने उसे १२ गाँवों सहित केलवे का पट्टा देकर वहाँ रक्खा, और दुर्गादास आदि से कहा कि बादशाह सीसोदियों और राठोड़ों की सम्मिलित सेना का मुकाबला नहीं कर सकता, आप निश्चिन्त रहिए । ( देखो भा० ३, पृ० ८६५) । वह ( सोनिंग ) उस ( महाराजा जसवंत सिंह ) की मृत्यु के पीछे राठोड़ दुर्गादास के साथ महाराजा अजित सिंह को लेकर महाराणा राजसिंह के पास आया । अजितसिंह के मेवाड़ से चले जाने के पश्चात् सोनिंग भी राठोड़ दुर्गादास के साथ राठोड़ों की सेना का मुखिया बनकर लड़ा | (देखो भा० ३, पृ० ८६७ पर का पृ० ८६६ के फुटनोट १८ का शेषांश) । औरंगज़ेब के साथ महाराणा की संधि होने के पश्चात् सोनिंग आदि राठोड़ महाराजा अजित सिंह को मेवाड़ से सिरोही इलाके में ले गए, वहाँ वह कुछ वर्षों तक गुप्त रूप से रखा गया । (देखो भा० ३, पृ० ८६६ का फुट नोट नं० ३ ) । जोधपुर के महाराज अजितसिंह ने भी उन ( सिरोही के देवड़ों) की सहायता की, क्योंकि वह उदयपुर छोड़ने के बाद कई वर्ष तक सिरोही - राज्य में रहा था । इस बात से महाराणा और अजितसिंह के बीच मनमुटाव हो गया । परन्तु कुछ समय बाद स्वयं अजितसिंह ने महाराणा से मेल करना चाहा । महाराजा को जोधपुर प्राप्त करने के लिये महाराणा की सहायता की आवश्यकता थी । (देखो भा॰ ३, पृ० ६१० ) । परन्तु वास्तव में बालक महाराजा अजित सिंहजी दिल्ली से चाँदावत ठाकुर मोहकमसिंह की ठकुरानी के साथ बलूदे भेज दिए गए थे। उस समय खीची मुकुंददास भी इनके साथ था । इसके बाद वहाँ पर बालक महाराज का सुरक्षित रहना असंभव समझ राठोड़ - वीर दुर्गादास और मुकुंददास इन्हें लेकर सिरोही पहुँचे और वहाँ पर उन्होंने स्वर्गवाही महाराजा जसवंत सिंहजी की रानी देवड़ीजी की सलाह से इनको कालिंद्री के पुष्करणे ब्राह्मण जयदेव की स्त्री को गुप्त रूप से सौंप दिया । इस विषय में हम मारवाड़ और मेवाड़ के इतिहासों को छोड़ कर तटस्थ लेखक यदुनाथ सरकार की 'हिस्ट्री ऑफ् औरंगज़ेब' से कुछ अवतरण उद्धृत करते हैं: दुर्गादास आकर फिर ( मार्ग में ) अपने बालक महाराज से मिला और उन्हें ( २३ जुलाई को ) सकुशल मारवाड़ में ले आया । अजितसिंह ने गुप्त रूप से आबू के दुर्गम पर्वतों के मठ में परवरिश पाई । ( भा० ३, पृ० ३७८ ) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २५५ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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