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________________ मारवाड़ का इतिहास इस पर उनके सरदारों ने तत्काल इस घटना की सूचना और महाराज की पगड़ी के मारवाड़ में भेजने का प्रबंध कर दिया । 'तवारीख़ मोहम्मद शाही' में लिखा है कि यह समाचार सुन औरङ्गजेब ने कहाः “दजिए कुफ शिकस्त " अर्थात्-आज कुफ़ (धर्मविरोध ) का दरवाजा टूट गया । परन्तु जब महल में बेगम ने यह हाल सुना, तो कहाः-- " इमरोज़ जाये दिल गिरिफ्तगीस्त के ई चुनी रुक्ने दौलत ब शिकस्त" अर्थात् आज शोक का दिन है कि बादशाहत का ऐसा स्तंभ टूट गया। महाराज जसवन्तसिंहजी बड़े वीरं, मनस्वी, प्रतापी, दूरदर्शी, नीति-निपुण, विद्वान् , कवि, दानी और गुणग्राहक थे । इनकी वीरता, मनस्विता, प्रताप, दूरदर्शिता और नीति-निपुणता का यही सबसे बड़ा प्रमाण है कि यह औरङ्गजेब के बढ़ते हुए प्रताप की कुछ भी परवा न कर समय-समय पर खुल्लमखुल्ला उसका विरोध करते रहते थे और एक बार तो इन्होंने स्वयं उसीकी सेना पर आक्रमण कर उसका खजाना लूट लिया मासिरे आलमगीरी में हि• सन् १०८६ की ६ जीकाद (वि. सं. १७३५ की पौष सुदि ७ ई• सन् १६७८ की १० दिसम्बर) को महाराज जसवंतसिंहजी की मृत्यु का होना लिखा है (देखो पृ० १७१)। __ श्रीयुत जदुनाथ सरकार ने भी अपनी 'हिस्ट्री ऑफ़ औरंगज़ेब' में उस दिन १० दिसम्बर का होना ही लिखा है (देखो भा० ३, पृ० ३६६)। उन्होंने यह भी लिखा है कि जमरूद में महाराज के साथ उनकी ५ रानियाँ और ७ अन्य स्त्रियाँ (परदायतें आदि Concubines, etc. ) सती हुई थीं (देखो भा० ३, पृ. ३७३ ) ख्यातों में इनकी संख्या १५ लिखी है । राजरूपक में लिखा है: सतरै संमत पौष पैत्रीसे; दशमी वार ब्रहस्पत दीसै । मुरधर छत्र जसो महराजा; सुरपुर गयो लियाँ ब्रद साजा । मिस्टर वी० ए. स्मिथ ने अपनी 'बॉक्स फोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया' में लिखा है कि यदि टॉड और मनूची ( Manucci ) का विश्वास किया जाय, तो यही मानना होगा कि जसवंतसिंह को औरंगजेब की तरफ से विष दिलवाया गया था (देखो पृ० ४३८)। १. महाराज अपनी सेना की देख-भाल स्वयं किया करते थे । ख्यातों में लिखा है कि वि० सं० १७२४ (ई० सन् १६६७) में औरंगाबाद के मुकाम पर शाहज़ादे मुअज्ज़म ने इनकी सेना के ३,३०० सैनिकों का निरीक्षण कर इनके प्रबन्ध की बड़ी तारीफ की थी और इसी से प्रसन्न होकर बादशाह ने इन्हें थिराद और राधनपुर के परगने दिए थे। २४२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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