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मारवाड़ का इतिहास
इसके बाद प्रथम श्रावण सुदि ४ (६ जुलाई ) को महाराजकुमार पृथ्वीसिंहजी पिता से मिलने के लिये दिल्ली आए । बादशाह ने इन्हें अपने पास बुलवाकर एक पहुँची और जड़ाऊ सरपेच उपहार में दिया । इसके बाद आरिवन सुदि १० (८ अक्टोबर ) को दशहरे के उत्सव पर बादशाह ने फिर महाराज को खिलअत और महाराजकुमार को जड़ाऊ कमरबन्द दिया। इसी प्रकार कार्तिक बदि १२ ( २५ अक्टोबर ) को बादशाह की तरफ़ से महाराज को खिलअत के साथ सुनहरी साज़ के दो घोड़े और महाराजकुमार को जड़ाऊ जमधर, मोतियों के गुच्छे और दो हजारी जात
और हजार सवारों का मनसब दिया गया । इसके बाद मँगसिर सुदि १२ (६ दिसम्बर) को महाराज को सरदी की मौसम का गरम खिलअत और वि० सं० १७२३ की चैत्र सुदि २ (ई० स० १६६६ की २७ मार्च ) को फिर एक खिलअत उपहार में मिला । तथा महाराजकुमार पृथ्वीसिंहजी को जड़ाऊ तुर्रा और सोने के साज़ का घोड़ा दिया गया। इसी प्रकार ज्येष्ठ वदि ४ ( १२ मई ) को महाराज को और भी एक खिलअत दिया गया।
इसके करीब ३ मास बाद बादशाह को सूचना मिली कि ईरान का बादशाह अब्बास सानी खुरासान की तरफ़ से हिंदुस्थान पर चढ़ाई करने का विचार कर रहा है । इस पर उसने आसोज वदि १ (४ सितम्बर ) को शाहजादे मुअज्जम के साथ ही महाराज जसवन्तसिंहजी को भी २०,००० सवारों के साथ उसको रोकने के लिये आगैरे से काबुल की तरफ रवाना कर दिया । इस अवसर पर फिर उसने महाराज को
१. आलमगीरनामा, पृ०६०८ | २. आलमगीरनामा, पृ० ६१४ । ३. आलमगीरनामे में लिखा है कि पहले के मनसब में वृद्धि करने. यह मनसब दिया गया __ था ( देखो पृ० ६१६-६१७)।
ख्यातों में लिखा है कि इसके साथ इनको फूलिया का परगना जागीर में मिला था । परन्तु मेड़तिया राठोड़ मथुरादास के पुत्र प्रासकरण की बगावत के कारण उसकी एवज़ में मालूबा का परगना दिया गया।
४. आलमगीरनामा, पृ० ६२३ और ६५६ । ५. आलमगीरनामा, पृ० ६६१ और ६६३ । ६. मासिरुलउमरा, भा० ३, पृ. ६०३ । ७. शाहजहाँ के मरने पर औरंगज़ेब वि० सं० १७२२ की माघ सुदि १० (ई. सन् १६६६
की ४ फरवरी) को दिल्ली से आगरे को गया था (आलमगीरनामा, पृ० ६३७) । उस समय महाराज भी उसके साथ थे ।
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