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________________ महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम) ही इन्हें 'महाराजा' का खिताब भी दिया गया । इसके बाद यह सीसोदिया सर्वदेवे की कन्या से विवाह करने को मथुरा पहुँचे और वहां से जोधपुर चले आएं। इसी साल जब राठोड़ महेशदास के पुत्र रत्नसिंहजी जालोर छोड़कर मालवे की तरफ़ चले गए और वहां पर उन्हें दूसरी जागीर मिल गई, तब बादशाह ने उक्त प्रांत भी महाराज को सौंप दिया । इससे वि० सं० १७१३ में वहां पर महाराज का अधिकार हो गया। ___ इन्हीं दिनों मारवाड़ में सीधलों ने उपद्रव मचाना शुरू किया । जैसे ही इसकी सूचना महाराज को मिली, वैसे ही इन्होंने उन्हें दबाने के लिये एक सेना रवाना की । उसने सींधलों को परास्त कर उनके मुख्य स्थान पांचोटा और कवलां नामक गांवों को लूट लिया । १. 'मनासिरुलउमरा', भा० ३, पृ० ६०० । ख्यातों में इस मनसब-वृद्धि का समय वि० सं० १७१० की माघ वदि ३ लिखा है । परन्तु 'मासिरुलउमरा' में इसका समय शाहजहाँ का २६ वाँ राज्यवर्ष दिया है; जो हि० सन् १०६५ की जमादिउल आखिर की १ तारीख से प्रारंभ हुआ था । उक्त तारीख वि० सं० १७१२ की चैत्र शुक्ला ३ (ई. सन् १६५५ की ३० मार्च) को आती है। ख्यातों में यह भी लिखा है कि बादशाह ने वि० सं० १७११ में मेवाड़ के महाराणा राजसिंहजी से ४ परगने ज़ब्त कर लिए थे । उनमें से बदनोर का परगना कार्तिक सुदि ५ को महाराज को दे दिया गया और कुछ काल बाद भेरुंद का परगना भी महाराज की जागीर में मिला दिया । २. 'मासिरुलउमरा', भा० ३, पृ० ६०० । ख्यातों में इसका नाम वीरमदेव लिखा है । यह सीसोदिया सूरजमल का पुत्र था । ३. ख्यातों में यह भी लिखा है कि इसी साल महाराज ने पंचोली मनोहरदास को अपनी रोहतक के ज़िले की जागीर का प्रबंध करने के लिये भेजा था। यह जागीर भी इन्हें बादशाह ने मनसब की वृद्धि के साथ ही दी थी। ४. ख्यातों से ज्ञात होता है कि बादशाह ने यह ( जालोर का ) परगना इन्हें मलारना प्रांत की एवज़ में दिया था । रत्नसिंहजी के मनसब के लिये देखो 'मनासिरुलउमरा', भा ३ पृ० ४४६-४४७ । परन्तु वहाँ पर मालवे की जागीर का उल्लेख नहीं है । २१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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