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________________ महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम ) महेशदास को सौंपा गया । अनन्तर वि० सं० १६९८ की वैशाख वदि ३ ( ई० स० १६४१ की १६ मार्च ) को महाराज लौटकर आगरे चले गए। शाहजहाँ ने भी वहाँ पर खिलअत और जड़ाऊ धोपं देकर इनका सत्कार किया । वैशाख शुक्ल १२ ( १२ अप्रैल ) को महाराज के मनसब के सवारों में के एक हजार सवार दुअस्पो और सेअपी कर दिए गएँ । प्रथम ज्येष्ठ ( मई ) के महीने आता दिखाई दिया । यह देख यह अपने को छिपाने के लिये उक्त बावली के अंदर चले गए । परन्तु वहाँ पर महाराज के शरीर में ब्रह्मराक्षस का प्रावेश हो गया और यह मूर्छित होकर गिर पड़े। इस पर साथ के लोग इन्हें उसी अवस्था में किले पर ले पाए । वहाँ पर मंत्र-शास्त्रियों के उपचार :; उस ब्रह्मराक्षस तो कहा कि यदि महाराज के समान अधिकारवाला ही कोई व्यक्ति महाराज के बदले जीवनोत्सर्ग करने को तैयार हो, तो मैं इनके प्राण छोड़ सकता हूँ । इस पर इनके प्रधानामात्य राजसिंह ने इन पर से वारा हुआ जल पीकर अपना जीवनोत्सर्ग कर दिया। इस महाराज तत्काल स्वस्थ हो गए। वहीं पर यह भी लिखा है कि मरते समय राजसिंह ने अपने वंशजों को उपदेश दिया था कि यदि तुममें भी इसी प्रकार के स्वार्थ-त्याग की सामर्थ्य हो तो राज्य का मंत्रित्व स्वीकार करना, अन्यथा नहीं । इसीस उसके वंशज अब तक इस पद को स्वीकार नहीं करते हैं। इस घटना की वास्तविकता के विषय में पूरी तौर से कुछ नहीं कहा जासकता। १. 'बादशाहनामे' (की जिल्द २, पृ० १५१ ) में लिखा है कि संवत् १६६६ के आषाढ़ (ई० सन् १६३६ के जून ) में काबुल के मुकाम पर बादशाह ने इसे, महाराज के प्रधान पुरुषों में होने के कारण, एक घोड़ा इनायत किया था। उसी में यह भी लिखा है कि बादशाह ने पहले पहल वि० सं० १६६५ की कार्तिक सुदि (ई० सन् १६३८ की नवम्बर ) में महेशदास को, जो पहले गजसिंहजी और जसवंतसिंहजी की सेवा में रह चुका था, ८०० जात और ३०० सवारों का मनसब देकर शाही मनसबदार बनाया था। बादशाहनामा, भा॰ २, पृ० १२२ । २. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० २२७ । ३. किरच या सीधी तलवार । ४. इस घटना की तिथि वैशाख वदि १४ (३० मार्च ) लिखी है । इस के चौथे दिन बादशाह ने भी अपनी तरफ से राठोड़ महेशदास को घोड़ा और खिलअत देकर राजा जसवंतसिंहजी का प्रधान मंत्री नियत किया था। बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० २२६ । ५. दो घोड़ों की तनख्वाह पानेवाला सवार दुअस्पा कहलाता था । ६. तीन घोड़ों की तनख्वाह पानेवाला सवार सेअस्पा कहलाता था । ७. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० २३० ।। २१३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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