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________________ सवाई राजा शूरसिंहजी इसके बाद महाराज जोधपुर. चले आए । इन्हीं दिनों राठोड़ वीरम स्वतंत्र होने का प्रयत्न करने लगा । इस पर महाराज ने अपनी एक सेना को उस पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी । कुछ दिन तक तो वीरम ने उसका सामना किया, परन्तु अंत में उसने फिर महाराज की अधीनता स्वीकार करली । इस पर महाराज ने प्रसन्न होकर उसे रावल की पदवी और महेवे का प्रांत दे दियो । वि० सं० १६७२ (ई० सन् १६१५) में राजा शूरसिंहजी लौट कर बादशाह के पास अजमेर चले गए । वहाँ पर इन्होंने ४५ हजार रुपए, १०० मुहरें और ६ हाथी बादशाह को भेट किएं । इनमें के एक प्रसिद्ध हाथी का नाम 'रणरावत' था । इसके कुछ दिन बाद इन्होंने 'फौज सिनगार' नामक एक हाथी और मी बादशाह को दियाँ । इस पर बादशाह ने भी महाराज को एक खासा हाथी दिया और शीघ्र ही उनका मनसब बढ़ाकर पाँचे हजारी जात और तीन हजार सवारों का कर दिया । गोविंददास को लेकर वहां पहुंच गए थे। महाराज की मारफत संधि की बातचीत तय हो जाने पर शाहज़ादा खुर्रम और महाराना का ज्येष्ठ पुत्र करण दोनों गोगुंदे में मिले । इसके बाद ये दोनों अजमेर में बादशाह के पास पहुँचे । वहां पर भी राजकुमार करण का यथोचित सत्कार किया गया । ( देखो पृ० ११-१३)। १. भाटी गोविंददास ने महाराज से कह सुन कर इस मामले में वीरम को सहायता दी थी और इसकी एवज़ में वीरम ने अपनी कन्या को उसके किसी कुटुम्बी के साथ व्याह देने का प्रतिज्ञापत्र लिख दिया था। यह प्रतिज्ञापत्र वि० सं० १६७१ में नाहनेड़ स्थान पर लिखा गया था। २. 'तुजुकजहांगीरी', पृ० १३६-१४०, १४३ । ३. 'तुजुक जहांगीरी' में बादशाह लिखता है कि "यह हाथी भी अच्छा होने से खास हाथियों में दाखिल किया गया है । परंतु पहला हाथी ( रणरावत ) अपूर्व वस्तु है और दुनिया की आश्चर्योत्पादक वस्तुओं में गिना जा सकता है। उसकी कीमत २०,००० रुपये हैं । मैंने भी उसकी एवज़ में १०,००० रुपये की कीमत का एक खासा हाथी सूरजसिंह को दिया" ( देखो पृ० १४३)। ४. 'तुजुकजहाँगीरी', पृ० १४२ । बादशाह अकबर और उसके उत्तराधिकारी जहाँगीर के राज्य में पाँच हज़ारी बहुत बड़ा मनसब समझा जाता था । साधारणतया इसमे बड़ा मनसब केवल शाहज़ादों को ही मिलता था । हाँ, कभी कभी कोई बड़ा अमीर सात (हफ़्त) हज़ारी तक भी पहुँच जाता था । परंतु शाहजहाँ के समय दस हज़ारी तक के मनसब अमीरों को मिलने लगे थे और शाहज़ादों के मनसब ४० या ५० हज़ारी १९१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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