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________________ सवाई राजा शूरसिंहजी और वहाँ से कुछ राजकीय ऊँटों को पकड़ कर अपने देश को ले चले । परन्तु इसकी खबर मिलते ही मांगलिया सूरा और राठोड़ ( महेशदास के पुत्र ) हरदास ने उनका पीछा कर वे ऊँट उनसे छीन लिए । इसी प्रकार महाराज को मारवाड़ में अनुपस्थित देख जैसलमेर-रावल भीमराजजी के कुछ सैनिक भी कोरणे की तरफ़ पहुँच इधर उधर लूटमार करने लगे थे। यह देख ऊहड़ गोपालदास ने उन पर चढ़ाई की। युद्ध होने पर गोपालदास मारा गया । परन्तु भाटियों को भी शीघ्र ही जैसलमेर लौट जाना पड़ा। वि० सं० १६५६ (ई० सन् १५१६ ) में सुल्तान मुराद मर गया । इस पर पहले तो बादशाह अकबर ने खुद दक्षिण पर चढ़ाई की । परन्तु अगले वर्ष वहाँ की सूबेदारी शाहजादे दानियाल को दी गई और उसकी मदद के लिये राजा शूरसिंहजी नियत किए गएँ। उस समय यह गुजरात में थे। इससे वहाँ से दक्षिण की तरफ़ जाते हुए कुछ दिन के लिये सोजत ( मारवाड़ ) में ठहर गए। यह बात बादशाह को बुरी लगी। इसलिये उसने महाराज के भाई शक्तिसिंह को राव की पदवी देकर सोजत जागीर में दे दिया। महाराज भी उस समय विरोध करना अनुचित समझ दक्षिण की तरफ़ चले गए। वहाँ पर कुछ ही दिनों में इन्होंने ( सआदतखाँ के प्रधान ) राजू के साथ के युद्धों में ऐसी वीरता दिखलाई कि उसका हाल सुन बादशाह आप ही आप इनसे प्रसन्न हो गया । इसी अवसर पर महाराज के मंत्री भाटी गोविन्ददास और राठोड़ ( रत्नसिंह के पुत्र ) राम ने उसे महाराज को सोजत का प्रांत लौटा देने के लिये समझाया । इससे अकबर ने वह प्रांत फिर से इन्हीं को लौटा दिया । अकबरनामे में अबुलफ़ज़ल लिखता है : वि० सं० १६५७ ( ई० सन् १६००) में अहमदनगर वालों से नासिक छीन लिया गया । इस पर पहले तो सआदतखाँ ने बादशाह की अधीनता स्वीकार कर ली । परन्तु शीघ्र ही अपने गुलाम गजू के बहकाने से वह फिर बागी होगया। यह देख १. मनासिरुल उमरा, भा॰ २, पृ० १८२ । २. शक्तिसिंह का अधिकार सोजत पर करीब एक वर्ष तक रहा था। ३. फ़ारसी तवारीखों में इस बात का उल्लेख नहीं है । ४. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ७७२ । १८३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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