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________________ मारवाड़ का इतिहास भाटी गोविंददास को देकर शीघ्र ही उधर को रवाना हो गए । मार्ग में जिस समय यह सिरोही के क़रीब पहुँचे, उस समय इन्हें वहाँ पर राव रायसिंहजी के धोके से मारे जाने का ख़याल आ गया । इससे उस घटना का बदला लेने के लिये इन्होंने अपने सैनिकों को उस राज्य के गाँवों को लूटने की आज्ञा देदी । यह देख वहाँ का राव सुरतान घबरा गया और उसने संघि करने की इच्छा से बहुत सा रुपया महाराज की भेंट किया । यहाँ से चल कर कुछ ही दिनों में यह गुजरात पहुँच गए और वहाँ पर ख़ाँ आज़म से मिल कर मुजफ़्फ़र के उपद्रव को दबाने का प्रयत्न करने लगे । अगले वर्ष मुजफ़्फ़र के ज्येष्ठ पुत्र बहादुर ने कुछ लोगों को लेकर गुजरात के प्रदेशों में लूटमार शुरू की । यह देख महाराज भी उसे दण्ड देने के लिये अहमदाबाद से रवाना हुए । परन्तु इनको दलबल सहित अपनी तरफ़ आते देख कर बहादुर की हिम्मत टूट गई । इसी से थोड़ीसी मुठभेड़ के बाद वह मैदान से भाग गर्यो । इधर महाराज को अपने अधिकांश योद्धाओं के साथ गुजरात की तरफ़ गया जान कर पीछे से बीकानेर वाले गाँगाँणी नामक ( मारवाड़ के ) गाँव में घुस आए १. पहले मारवाड़ के राठोड़ नरेशों और उनके वंश के जागीरदारों के बीच भाई - बिरादरी का-सा बर्ताव चला आता था । परंतु भाटी गोविंददास ने इस ढंग को बदल कर, राज्य का सारा प्रबंध बादशाही ढंग पर कर दिया । इससे मारवाड़ नरेशों और उनके सरदारों का संबंध स्वामी सेवक का-सा हो गया और राज्य - परिवार में होनेवाली शादी ग़मी के अवसर पर ठकुरानियों के राजकीय अंतःपुर में उपस्थित होने की प्रथा उठ गई । दरबार के समय राव रणमल्लजी के वंश के जागीरदारों के लिये दाईं तरफ़ का और राव जोधाजी के वंश के जागीरदारों के लिये बाई तरफ़ का स्थान नियत किया गया । राजकार्य के लिये दीवान, बख्शी, खांनसामाँ, हाकिम, कारकुन दफ्तरी, दारोगा, पोतेदार, वाक़यानवीस आदि पद नियत किए गए । ख़वास पासवानों आदि को भी अलग अलग काम सौंपे गए। महाराज की ढाल और तलवार रखने का काम खीचियों को, चँवर और मोरछल रखने का काम धांधलों को, जलूसी पंखा और ख़ास मोहर रखने का काम गहलोतों को, डेवढी के प्रबंध का काम सोभावतों को और महाराज के हाथी की सवारी करने पर महावत का काम आसायचों को सौंपा गया । इसी प्रकार दूसरे कार्यों के लिये भी अन्य खास ख़ास वंश के राजपूत नियत किए गए। २. यह मारवाड़ नरेश राव चंद्रसेनजी के पुत्र थे और इन्हें सिरोही के राव सुरतान ने रात्रि में अचानक आक्रमण कर मारा था । ३. यहीं से वि० सं० १६५४ में इन्होंने नापावस गांव के दान की आज्ञा दी थी। ४. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ७२५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १८२ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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