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मारवाड़ का इतिहास
वास्तव में उस समय राजपूताने में महाराणा प्रताप और राव चन्द्रसेन, यही दो स्वाभिमानी वीर अकबर की आंखों के कांटे बने थे । राजस्थान की प्रचलित दंतकथा के अनुसार इनमें से पहले वीर ने तो एक बार अपने कुटुम्ब के महान् दुःख को देख कंधा डाल देने का विचार भी कर लिया था । परन्तु दूसरा वीर तो सुख-दुःख की कुछ भी परवा न कर अन्त तक बराबर अपने व्रत का निर्वाह करता रहा । किसी कवि ने क्या ही यथार्थ कहा है
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अणदगिया तुरी ऊजला असमर, चाकर रहण न डिगियो चीत । सारे हिन्दुस्तान तणै सिर पातल नै चन्द्रसेण प्रवीत ।
अर्थात् उस समय सारे हिन्दुस्तान में महाराणा प्रताप और राव चन्द्रसेन, यही दो ऐसे वीर थे, जिन्होंने न तो अकबर की अधीनता ही स्वीकार की और न अपने घोड़ों पर शाही दान ही लगने दिया, तथा जिनके शस्त्र हमेशा ही यवन सम्राट् के विरुद्ध चमकते रहे ।
राव चन्द्रसेनजी ने सांगा नामक ब्राह्मण को अरटनडी नामक एक गांव दान दिया था ।
इन रावजी के तीन पुत्र थे
(१) रायसिंह, (२) उग्रसेन और (३) आसकरन ।
१. कहते हैं, महाराणा ने एक बार अपने परिवार के कष्टों को देखकर अकबर की अधीनता स्वीकार करने का विचार कर लिया था । परन्तु बीकानेर- नरेश के छोटे भाई पृथ्वीराज के उपदेश से वह फिर सम्हल गए ।
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