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________________ राव चन्द्रसेनजी चन्द्रसेनजी का सारा प्रबंध उलट गया । इस पर भी कुछ समय तक तो यह पहाड़ों से निकल कर शाही सेना का सामना करते रहे'; परन्तु विशाल शत्रुदल से टक्कर लेने में अपने मुठ्ठी-भर वीरों की अधिक हानि होती देख अंत में इन्हें फिर पहाड़ों में घुस जाना पड़ा । शाही सेना पहाड़ों में ऐसे वीरों का पीछा कर एक बार असफल हो चुकी थी। इसलिये वह रामगढ़ के किले में जाकर ठहर गई, और जी तोड़ परिश्रम के साथ राव चन्द्रसेनजी के निवासस्थान का पता लगाने तथा इन्हें परास्त करने की कोशिश करने लगी । परन्तु शाही सेना के चलाए कुछ पता न चला । इसी बीच बगड़ी ठाकुर देवीदास नामक एक व्यक्ति ने आकर शाही सेना को सूचना दी कि आजकल चन्द्रसेन अपने भतीजे कल्ला के पास है । यदि उसको पकड़ना चाहते हो, तो उधर चलो। शाही सैनिक तो पहले से ही चन्द्रसेनजी की तलाश में थे, अतः इस सूचना के पाते ही तत्काल वहाँ जा पहुँचे । परन्तु कल्ला ने चन्द्रसेनजी के वहाँ होने का स्पष्ट तौर से प्रतिवाद किया । इस पर शाही सेना को वहाँ से निराश होकर लौटना पड़ा । इससे शिमालखाँ देवीदास से चिढ़ गया और उसने एक दिन बहाने से उसे अपने यहाँ बुलाकर कैद कर लेने का प्रबंध किया । परन्तु जब समय आया, तब देवीदास अपनी वीरता से उसके पंजे से बचकर निकल गया और शिमालखा मुँह ताकता रह गया । इसके बाद देवीदास अपना शाही लशकर में रहना आपत्तिजनक समझ वहाँ से कल्ला के पास चला गया । परन्तु उसने शिमालखाँ से बदला लेने का दृढ़ निश्चय कर लिया था । इसीसे एक दिन मौका पाकर देवीदास और राव चन्द्रसेनजी ने एकाएक बादशाही सेना पर आक्रमण कर दिया । यद्यपि देवीदास १. अकबरनामा, भा० ३, पृ० १५८-१५६ २. इस पुरुष ने रामगढ़ में आकर कहा कि मैं वही राठोड़ देवीदास हूँ, जिसको लोगों ने मिरज़ा श(द्दीन के साथ मेड़ते की लड़ाई में मरा हुआ समझ लिया था। वास्तव में जिस समय मैं अधिक घायल हो जाने के कारण रणक्षेत्र में बेहोश पड़ा था, उस समय एक संन्यासी वहाँ आ पहुँचा और मुझे रणक्षेत्र से उठाकर अपने स्थान पर ले गया । उसके इलाज से जब मैं बिलकुल अच्छा हो गया, तब कई दिनों तक तो उसी के साथ फिरता रहा और अब उसकी आज्ञा लेकर इधर आ गया हूँ। इसके साथ ही उसने बादशाही सेवा कर ख्याति प्रकट करने की इच्छा से उस सेना में सम्मिलित होना भी स्वीकार कर लिया। शाही सैनिकों में से कुछ ने उसकी कही इस कथा को सच्ची और कुछ ने झूठी समझा। (अकबरनामा, भा० ३, पृ० १५६) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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