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राव मालदेवजी मुकाबला हुआ । यद्यपि सीसोदिये सरदार भी बड़े बहादुर थे, तथापि वे राठोड़ों की तलवार का तेज न सह सके और कुछ ही देर बाद युद्ध से भाग खड़े हुए। इस युद्ध में रानाजी की तरफ़ के योद्धाओं में बालेचा सूजा भी मारा गया था । यह युद्ध वि० सं० १६१३ की फाल्गुन वदी १ (ई० सन् १५५७ की २४ जनवरी) को हुआ था। ___ इसी बीच रावजी ने मेड़ते पर भी एक सेना भेज दी थी । अतः जिस समय जयमल लौट कर मेड़ते पहुँचा, उस समय तक वहाँ पर मालदेवजी का अधिकार हो चुका था और राव मालदेवजी का पुत्र जैमल और वीरवर देवीदास वहाँ की रक्षा पर नियत थे । इससे उसे मेड़ते की आशा छोड़ कर महाराना के पास वापस लौट जाना पड़ा । इसपर उदयसिंहजी ने उसकी वीरता और सेवाओं का विचारकर उसे बदनोर की जागीर दे दी ।
१. ख्यातों में लिखा है कि बालेचा सूजा मेवाड़ से याकर मालदेवजी की सेवा में रहने
लगा था । परन्तु जिस समय इन्होंने वि० सं० १६०७ (ई० सन् १५५० ) के करीब कुंभलगढ़ पर चढ़ाई की, उस समय वह इनका साथ देने से इनकार कर मेवाड़ को वापस लौट गया। इस पर महाराना ने उसे फिर अपने पास रख लिया । जिस समय रावजी ने देवीदास को इस युद्ध में भेजा था, उस समय उसे सूजा से बदला लेने का खास तौर से आदेश दे दिया था। इसके बाद जब मेवाड़ की सेना को परास्त कर
और सूजा को मारकर देवीदास वापस लौटा, तब रावजी ने उसकी वीरता की बड़ी प्रशंसा की और उसे मेड़ते की रक्षा के लिये भेज दिया। २. इसी वर्ष (वि० सं० १६१३=हि० स० ६६४ ई. सन् १५५७ में ) अकबर की आज्ञा से मुहम्मद कासिमखाँ नेशापुरी ने हाजीखाँ से अजमेर और नागोर छीन लिया।
(ईलियट्स हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, भा० ६, पृ० २२) ३. वि० सं० १६१५ (ई० स० १५५८) का एक शिलालेख इस (महाराज-कुमार )
जैमल का मेड़ते परगने के रैण नामक गांव से मिला है । इसमें राव मालदेवजी के राज्य समय उक्त राजकुमार (जैमल ) के द्वारा भूमिदान किए जाने का और साथ ही इस दान के जगमाल के द्वारा पालन किए जाने का उल्लेख है । इस लेख में का जगमाल मेड़तिया राठोड़ जयमल का छोटा भाई था और उसको मालदेवजी ने मेड़ते का आधा हिस्सा जागीर में दे दिया था। वि० सं० १६१८ (ई० स० १५६१) में जब बादशाह अकबर की सेना ने मेड़ता विजय करते समय मालकोट की दीवार को सुरंग से उड़ा
दिया, उस समय यह जगमाल अपने कुटुम्बियों के साथ बाहर निकल गया था। ४. कहीं-कहीं वि० सं० १६११ के आश्विन (ई० स० १५५४ के सितम्बर ) मास में इस
जागीर का दिया जाना लिखा है । इससे ज्ञात होता है कि जिस समय देवीदास और
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