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________________ राव मालदेवजी महाराणा उदयसिंहजी के साथ कर दिया । इसकी सूचना पाकर मालदेवजी को बड़ा क्रोध आया और इन्होंने इसका बदला लेने के लिये अपनी सेना को खैर और कुंभलगढ़ पर आक्रमण करने की आज्ञा दी । यद्यपि कुंभलगढ़ ख़ास पर तो इनका अधिकार न हो सका, तथापि वहां तक का गोढवाड़ का सारा प्रदेश और खैरवा इनके अधिकार में आ गया । वि० सं० १५६८ ( ई० स० १५४१ ) में राव मालदेवजी ने २०,००० सैनिकों को साथ लेकर बीकानेर पर चढ़ाई की । इसकी सूचना पाकर वहां के राव जैतसीजी भी इनके मुक़ाबले को चले । मार्ग में जब दोनों सेनाएँ एक दूसरी के क़रीब 1 पहुँचीं, तब पहली ने ‘पही' नामक गांव में और दूसरी ने 'सूवा' में अपना डेरा डाल दिया । परंतु रात्रि में ही किसी आवश्यक कार्य के लिये जैतसीजी को बीकानेर लौटने की आवश्यकता प्रतीत हुई' । यद्यपि वह अपने दो-एक विश्वस्त सरदारों से प्रातः काल तक लौट आने का वादा कर चुपचाप ही रवाना हुए थे, तथापि किसी तरह इस बात की खबर उनके अन्य सरदारों तक भी पहुँच गई। इस पर वे सब किसी भावी आशंका से घबरा गए और उनमें से बहुत-से अपने सैनिकों के साथ रात्रि में ही युद्धस्थल छोड़ इधर-उधर निकल गए । राव मालदेवजी के गुप्तचरों ने भी यथासमय इसकी सूचना अपने सेनानायकों के पास पहुँचा दी थी । अतः जैसे ही प्रातः काल के अँधेरे में जैतसीजी लौटकर अपने शिविर 'सूवा' में पहुँचे, वैसे ही राव मालदेवजी की सेना ने आगे बढ़ उन्हें घेर लिया। थोड़ी देर के युद्ध में ही राव जैतसीजी तो वीरता से लड़कर मारे गए और राव मालदेवजी ने बीकानेर की तरफ़ प्रयाण किया । इसकी सूचना पाते ही बीकानेर के क़िलेदार ने जैतसीजी के पुत्र कल्याणमलजी और भीमराज को मय उनके कुटुम्बवालों और २०० सैनिकों के सिरसे की तरफ़ मेज दिया । जोधपुर की सेना ने बीकानेर पहुँच वहां के किले को घेर लिया । तीन दिन तक तो किलेवाले क़िले में रहकर ही इनका सामना करते रहे । परंतु चौथे दिन वे लोग बाहर निकल सम्मुख युद्ध में प्रवृत्त हुए । अंत में उन सबके मारे जाने पर किला जोधपुरवालों के १. ख्यातों में लिखा है कि राव जैतसीजी ने उन्हीं दिनों पठानों से २,००० घोड़े ख़रीदे थे । परंतु उनके रुपये अभी तक बाकी थे । अतः जब पठानों को जैतसीजी के युद्ध में जाने का समाचार मिला, तब वे वहां पहुँच उनसे उन रुपयों के बाबत आग्रह करने लगे । इसी झगड़े को तय करने के लिये राव जैतसीजी को बीकानेर लौटने और अपने कर्मचारियों से उनका हिसाब साफ करवा देने की आवश्यकता आ पड़ी थी । १२५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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