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मारवाड़ का इतिहास
१६. राव मालदेवजी
यह मारवाड़-नरेश राव गाँगाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे, और उनके बाद वि० सं० १५८८ की आषाढ वदी ५ ( ई० सन् १५३१ की ५ जून ) को सोजत में गद्दी पर बैठे। इनका जन्म वि० सं० १५६८ की पौष वदी १ (ई० सन् १५११ की ५ दिसम्बर , को हुआ था । जिस समय यह गद्दी पर बैठे, उस समय इनका अधिकार केवल सोजत और जोधपुर के परगनों पर ही था। परन्तु उसी वर्ष इन्होंने भाद्राजन के सींधलों पर सेना भेजी। इस पर मेड़ते के स्वामी वीरमदेव ने भी अपनी सेना के साथ आकर इसमें योग दिया। कई दिनों के युद्ध के बाद भाद्राजन का स्वामी वीरा मारा गया और वहां पर मालदेवजी का अधिकार हो गया । इसके बाद इसी सेना ने रायपुर के सींधलों पर चढ़ाई की और वहां के शासक को मारकर उक्त प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया।
वि० सं० १५८६ ( ई० स० १५३२ ) में जिस समय गुजरात के सुलतान बहादुरशाह ने मेवाड़ पर चढ़ाई की, उस समय मालदेवजी ने भी अपनी राठोड़-वाहिनी को उसके मुकाबले में भेज कर राना विक्रमादित्य की अच्छी सहायता की :
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८ चंगावडा ( जोधपुर परगने का ) चारणों को और ६ काकेलाव व्यासों का ( जोधपुर परगने का ), १० अनन्तवासणी ( सोजत परगने का ) ब्राह्मणों को। इसी प्रकार इनके अन्य गाँवों के दान का उल्लेख भी मिलता है । परन्तु इस विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता । १. उस समय जैतारण, पौकरण, फलोदी, बाहड़मेर, कोटड़ा, खेड़, महेवा, सिवाना और
मेड़ता आदि के स्वामी, समय उपस्थित होने पर केवल सैन्य आदि से जोधपुर-नरेश की सहायता कर दिया करते थे । परन्तु अन्य सब प्रकार से वे अपने-अपने अधिकृत प्रदेशों के स्वतंत्र शासक थे।
इसके अलावा भाद्राजन आदि के सींधल तो पहले से ही मेवाड़वालों से सम्बन्ध रखने लगे थे। परन्तु इन दिनों मेड़तावालों का सम्बन्ध भी उनसे बढ़ गया था। अजमेर, जालोर और नागोर पर मुसलमानों का अधिकार था।
२. कहीं-कहीं पर इस सहायता का चित्तौड़ के 'दूसरे शाके' के समय अर्थात् वि० सं० १५६१
(ई० स० १५३४ ) में दिया जाना लिखा है ।
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