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________________ मारवाड़ का इतिहास मेड़ते पर चढ़ाई कर दी । यह देख वरसिंह जोधपुर चला आया । मल्लूखाँ मी मेड़ते को लूट जोधपुर की तरफ़ चला । जैसे ही उसके इस इरादे की खबर राव सातलजी के पास पहुँची, वैसे ही यह भी अपने भाई सूजाजी को साथ ले उसके मुकाबले को चले । मल्लूखाँ मार्ग में पीपाड़ को लूटता हुओं कोसाना के पास पहुँचा । वहीं पर उसका और राव सातलजी का मुकाबला हो गया । उस समय तक रावजी का भाई दूदो भी अपने योद्धाओं को लेकर वहाँ आ गया था। इसके बाद राठोड़-सरदारों ने सलाह करें यवन-सेना पर नैश आक्रमण किया । इससे घबराकर वह मैदान से भाग चली, और इसी अचानक विपत्ति में पड़ स्वयं मल्लूखाँ को मी अजमेर की तरफ भागना पड़ा । यद्यपि इस युद्ध में विजय राव सातलजी के ही हाथ रही', तथापि १. वरसिंह के मरने पर उसका पुत्र सीहा मेड़ते का स्वामी हुआ । परन्तु उसकी शिथिलता से लाभ उठा कर अजमेर के सूबेदार ने मेड़ते पर अधिकार कर लेने का इरादा किया । यह देख वि० सं० १५५२ (ई० सन् १४६५ ) में उस (सीहा ) के चचा दूदा ने वहाँ का शासन अपने हाथ में ले लिया । मेड़ते पर दूदा का कब्जा हो जाने से सीहा रोयाँ चला गया । परन्तु फिर उसने वहाँ से अजमेर की तरफ जाकर वि० सं० १५५४ (ई० सन् १४६७) में भिनाय पर अधिकार कर लिया, और २५ वर्ष तक वह वहाँ का शासन करता रहा । इसी सीहा के चौथे वंशज केशवदासजी को बादशाह जहाँगीर ने वि० सं० १६६४ (ई० सन् १६०७) में झाबुअा जागीर में दिया था। २. ख्यातों में लिखा है कि मल्लूखाँ जिस समय पीपाड़ पहुँचा, उस समय वहाँ की कई सुहागन स्त्रियाँ गौरी की पूजा करने को नगर के बाहर आई हुई थीं। इसलिये मुसलमानों ने उन्हें पकड़ लिया। परन्तु राव सातलजी ने कोसाने के पास रात को हमला कर उन्हें छुड़वा लिया। ३. इस युद्ध में दूदा ने बड़ी वीरता से शत्रु का मुकाबला किया था । ४. ख्यातों में लिखा है कि आक्रमण करने के पहले राव जोधाजी का चचेरा भाई वरजाँग स्वयं भेस बदलकर शत्रु-सैन्य का भेद जान आया था। ५. ऐसा प्रसिद्ध है कि जोधपुर में चैत्र-बदी ८ को जो 'घुड़ले' का मेला होता है, वह इस युद्ध में मारे गए एक यवन-सेनापति (घले) की यादगार में प्रचलित किया गया था। उस दिन औरतें कुम्हार के यहाँ से एक चारों तरफ़ छेदवाली मटकी लाकर और उसमें दीपक जलाकर गीत गाती हैं । चैत्र-सुदी ३ को वह मटकी तोड़ या पानी में डुबा दी जाती है । मटकी के छेदों से शायद घडूले के शरीर में लगे घावों का बोध करवाया जाता है और दीपक से उसकी जीवात्मा का । १०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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