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________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १५२२ ( ई० सन् १४६५ ) में राव जोधाजी के पुत्र बीकाजी अपने चचा काँधलजी आदि को साथ लेकर जांगलू की तरफ़ गएं, और कुछ वर्ष बाद वहीं पर उन्होंने अपना नया राज्य कायम किया । इस समय वह बीकानेर राज्य के नाम से प्रसिद्ध है। _ वि० सं० १५२३ ( ई० सन् १४६६) में छापर-द्रोणपुर के स्वामी बछराज ने अपने चचा का बदला लेने के लिये मारवाड़ में लूटमार शुरू की। इस पर जोधाजी की आज्ञा से इनकी सेना ने बछराज को मारकर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया। परन्तु कुछ मास बाद बछराज के पुत्र मेघा ने रावजी से मेल कर लिया । इससे प्रसन्न होकर इन्होंने उसका सारा प्रदेश उसे वापस लौटा दिया । १. ख्यातों में लिखा है कि एक रोज़ काँधल और बीकाजी दोनों दरबार में बैठे बातें कर रहे थे । इतने में राव जोधाजी वहां आ गए, और इनको बातों में लगा देख हँसी में कहने लगे कि क्या आज चचा-भतीजे मिलकर किसी नए प्रदेश को दबाने की सलाह कर रहे हैं ? यह सुन कांधल ने उत्तर दिया कि यह कोई बड़ी बात नहीं है । ईश्वर चाहेगा, तो ऐसा ही होगा। हां, इसका निश्चय हो जाना ज़रूरी है कि यदि मैं युद्ध में किसी के हाथ से माग जाऊँ, तो उससे बदला लेने में ढील न की जाय । यह बात जोधाजी ने स्वीकार कर ली। इसके बाद सांखला नापा और जाट निकोदर की सलाह से ये लोग, कुछ चुने हुए वीरों के साथ, जांगलू की तरफ चले । उस समय उस प्रदेश का बहुत-सा हिस्सा जाटों के अधिकार में था, और वे आपस में एक दूसरे से लड़ा करते थे । मार्ग में मंडोर पहुँचने पर बीकाजी ने अपने इष्टदेव भैरव की मूर्ति को भी साथ ले लिया । इसके बाद यह देसणोक पहुंचे। वहां पर करणीजी ने इन्हें सफलता होने का आशीर्वाद दिया। वहां से चलकर कुछ समय तक तो ये लोग चूंडासर में रहे, और फिर इन्होंने कोडमदे-सर में जाकर निवास किया । उसी स्थान पर वह भैरव की मूर्ति स्थापित की गई। धीरे-धीरे करीब २० वर्ष के लगातार परिश्रम से इन लोगों ने आस-पास के जाटों, सांखलों और भाटियों को हराकर उनके बहुत से प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वि० सं० १५४२ (ई० सन् १४८५) में बीकाजी ने एक उचित स्थान चुनकर वहां पर नए किले का शिलारोपण किया, और उसी के पास अपने नाम पर बीकानेर-नगर बसाया । इस नगर की शहरपनाह वि० सं० १५४५ (ई० सन् १४८८) में बनाई गई थी। २. किसी-किसी ख्यात में जोधाजी का अपने दामाद अजित सिंह को मारकर उसके राज्य पर अधिकार करने का इरादा होना लिखा है। परंतु यदि ऐसा होता, तो मेघा को वह प्रदेश क्यों सौंपा जाता। ६८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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