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________________ राव जोधाजी इसी समय इनकी एक रानी हाडी जसमादेवी ने किले के पास 'रानीसागर' नामक तालाब बनवायां, और दूसरी रानी सोनगरी (चौहान ) चाँदकुँवरी ने एक बावली बनवाई । यह 'चाँदबावड़ी' ( चौहान-बावड़ी ) के नाम से प्रसिद्ध है । ख्यातों के अनुसार वि० सं० १५१६ की आषाढ़-सुदी ( ( ई० सन् १४५६ की 1 जून ) को इस नवीन किले की प्रतिष्ठा की गई । इसके बाद राव जोधाजी ने अपने पुत्र सातल को फलोदी और नींबा को सोजत का प्रबंध करने के लिये भेजा। ख्यातों में यह भी लिखा है कि किले के द्वार की स्थापना का मुहूर्त निश्चित हो जाने पर, उपयुक्त शिला के समय पर न लाई जा सकने के कारण, वहीं पास में स्थित एक ऊँट चरानेवाले के बाड़े से द्वार की शिला लाकर स्थापित की गई थी। उस शिला में बाड़े के द्वार को बंद करने के लिये लगाए जानेवाले डंडों के छेद बने हैं । यह स्थान जोधाजी के फलसे के नाम से प्रसिद्ध है । घोड़े पर बैठकर किले में जानेवालों में से महाराज लोग लोहापोल के आगे की किलेदार की चौकी के आगे के प्यादबखिायों के दालान के सामने, रावराजा लोग लोहापोल के पास, सिरायत ( लाइन के सिरे पर बैठनेवाले ) सरदार जोधाजी के फलमे के आगे ( लाठ के पास ? ), हाथके कुरब वाले जोधाजी के फलसे के भीतर, ताजीम और 'बांहपैसाव' वाले, जिनको सामने की 'पोल (लाइन ) में बैठने और मरने पर रथी के आगे घोड़ा निकालने का अधिकार है, वे जोधाजी के फलम के बाहर, अन्य ताज़ीम और बांहपसाव वाले चौहानों के दालान के पहले कौने के पास या इमरतीपौल के पास, दीवान और बख्शी के दरजे के मुत्सद्दी इमरती पौल की अगली महराब के नीचे और बाकी मुत्सद्दी इसके पीछे घोड़े से उतर जाते हैं । परन्तु महाराजा की इच्छानुसार इसमें परिवर्तन होता रहता है। किसी-किसी ख्यात में करनीजी नाम की चारणजाति की प्रसिद्ध महिला द्वारा किले का स्थान बताया जाना और उसी के द्वारा उसका शिलारोपण होना भी लिखा है । १. इस रानी ने एक कुआं भी खुदवाया था। (१) जिनके झुक कर अभिवादन करने पर महाराजा अपना हाथ अपने सीने तक लाकर अभिवादन ग्रहण करते हैं। (२) जिनका अभिवादन महाराजा खड़े होकर ग्रहण करें | इसके दो भेद हैं । इकहरी ताज़ीम वालों के आने के समय ही महाराजा खड़े होकर अभिवादन ग्रहण करते हैं और दुहेरी ताज़ीम वालों के प्राते और जाते दोनों समय महाराजा खड़े होते हैं । (३) जिनके झुक कर पैरों पर हाथ लगाने के समय महाराजा अपना हाथ उनके कंधे पर लगाते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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