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________________ मारवाड़ का इतिहास इसके कुछ दिन बाद पास चले गए । उन्होंने भी No-fi इ‌रान २०५७ 200 सत्ताजी और नरबद दोनों मेवाड़ में महाराना मोकलजी के इन्हें निर्वाह के लिये जागीर देकर अपने पास रख लिया । १४. राव रणमल्लजी यँह मारवाड़-नरेश राव चंडाजी के बड़े पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १४४६ की वैशाख सुदी ४ ( ई० सन् १३९२ की २८ अप्रैल) को हुआ था । वि० सं० १४६५ ( ई० सन् १४०८ ) में यह पिता की आज्ञा से अपना राज्याधिकार छोड़कर जोजावर नामक गांव में जा बसे । ख्यातों के अनुसार उस समय इनके पास क़रीब ५०० योद्धा थे । कुछ दिन बाद यह ( वहां से धणला ( सोजत - प्रान्त में * ) होते हुए मेवाड़ में महाराणा लाखाजी के पास चले गए । महाराणा लाखाजी ने इनकी योग्यता से प्रसन्न होकर इन्हें अपने पास रख लिया, और खर्च के लिये धणला के साथ ही अन्य कई गांव जागीर में दिए। इसी समय इन्होंने महाराणा की सेना लेकर अजमेर १. ख्यातों में लिखा है कि युद्ध में नरबद की एक आँख फूट गई थी । मंडोर विजय हो जाने पर रणमल्लजी ने मेवाड़ की सेना और उसके साथ के सरदारों के लिये किले के बाहर ही ठहरने का प्रबंध करवा दिया था। उनका विचार था कि जब तक किले की रक्षा का पूरा-पूरा प्रबन्ध न होले, तब तक दूसरे राज्य की सेना को किले में घुसने देना उचित न होगा | परन्तु मेवाड़ वाले इससे मनही मन नाराज़ हो गए और लौटते समय नरबद को भी अपने साथ मेवाड़ ले गए। उन्हीं में यह भी लिखा है कि मंडोर पर रणमल्लजी का अधिकार होजाने पर भी सत्ताजी कुछ दिन वहीं रहे और इसके बाद यह आसोप की तरफ़ चले गए । युद्ध में लगे घावों के ठीक हो जाने पर नरबद भी मेवाड़ से पिता के पास आसोप चला आया और कुछ दिन बाद सत्ताजी को साथ लेकर मेवाड़ लौट गया। वहीं कुछ समय बाद राव सत्ताजी का देहान्त हुआ । २. राजपूताने के इतिहास में लिखा है कि राना मोकल ने सत्ता और नरबद को एक लाख की कायला की जागीर देकर अपना सरदार बना लिया था । ( देखो पृ० ५८४ ) मारे जाने पर, जोधाजी को पैतृकप्रतीत होती है । परन्तु यह घटना राना कुंभा के समय, रणमल्लजी के राज्य से वंचित करने का उद्योग करने के समय की ३. मारवाड़ की ख्यातों में इनका नाम रिडमलजी लिखा है । ४. उस समय यह प्रान्त मेवाड़ राज्य में था, परन्तु इस समय मारवाड़ राज्य में है । सोजत पर उस समय हुल राजपूतों (गहलोतों की एक शाखा) का अधिकार होना पाया जाता है । परन्तु कर्नल टॉडने हुलों को गहलोतों से भिन्न माना है । ( ऐनाल्स ऐंड ऐन्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० १, पृ० १४४ ) ५. कहीं इनकी संख्या ४० और कहीं ५० लिखी है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ७० www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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