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* महावीर जीवन प्रभा *
मारना मत सीखो" पाशविक बलवाले कातर जन दूसरों का नाश करते हैं और आत्मिक-बल (Soul-force) वाले सूरवीर अन्य की रक्षा करते हैं और आत्म-समर्पण में सतत तत्पर रहते हैं- इस घोषणा को गाँधीवाद ने स्वीकारा है, कार्यान्वित किया है और सफलता प्राप्त की है- अ. हिंसा का सच्चा मार्ग यही आज्ञा करता है ‘मा हण' मत मारो, परोपकार के लिए और आत्म रक्षण (Self-protection) के खातिर प्राणों का बलिदान ( Sacrifice ) करदो. जगत् में करीब करीब तमाम ईश्वरों ने शत्रु का बदला लेकर अपनी कातरता का दिग्दर्शन कराया है और दबी हुई हिंसा की नींव पर भारी महलात खड़ी करदी हैं जो आत्म कल्याण से परे रखती हैं; किन्तु हे परम देव महावीर ! तू ही एक संसार में ऐसा अवतरा कि बदला लेना पाप बताया, इतना ही नहीं करके दिखाया. आपने यह एक भारी विशिष्टता जताई कि जितने ही आपके सम्पर्क में आये उन सबको चन्दन कि तरह सुगंधित किये, चन्दन की लकड़ी पर कुल्हाड़ा मारो, या मस्तक घीसो वा पेर रगडो, चाहे उंगुली घीसो सबको सुगन्ध देता है, भगवान् ने अपने पूजक और निन्दकों को तथा कष्टदाता
और भक्तिकर्ता को सुखी बनाये ; उनने परम शत्रुओं पर प्रेम रखकर समता गुण को चरितार्थ किया है- धन्य हो ! वीर प्रभो! आप धन्य हो !!
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