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* अवशेष *
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प्रकाश- इन दस श्रावको के लिए 'उपासक दसाङ्ग' नाम का सूत्र बना हुवा है, उनकी मर्यादा अनुकरणीय है, उनमें खास ज्ञातव्य बात यह थी कि व्रत समय जितनी ऋद्धि थी उससे अधिक नहीं रक्खी बल्कि उसको घटाने की कोशिस की. आज के व्रतधारियों का त्याग तो नाम मात्र (Nominal ) है, सौ रु० पास में हो तो हज़ार रक्खें, और हज़ार हो तो लाख रक्खें; मतलब कि वे तृष्णा से मुक्त नहीं होते; इसके अलावा वे व्रतों में भी भारी छूटछाट रखते हैं. आनन्दादि अनेक कष्टों की उपस्थिति में भी बड़े चुस्त रहते थे उनने “ सम्यग् दर्शन-ज्ञान- चारित्राणि मोक्षमार्गः " ( Right belief, right Knowledge, and right conduct- this is the path of final emancipation ) इसे पूरा समझा था और इसका पूर्णतः पालन करते थे- एक एक श्रावक के पास हज़ारों की तादाद में मवेशी रहते थे, जिसमें दूधालू अधिक प्रमाण में थे. माय को पूजनीक माता मानने वाले हिन्दु किस शताब्दि में जिन्दगी बसर कर रहे हैं ? एक जमाना ऐसा था कि १ प्रत्येक हिन्दु के घर में कम से कम एक गाय अवश्य पाती थी, आज तो गो विना के घर शून्य अरण्य के मानिन्द नज़र आते हैं, यदि हिन्दुओं ने गायों का पालन
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किया होता तो आज कत्ल खाने में गायें कटती नज़र
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