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* महावीर जीवन प्रभा *
शिथिलता से सुदृढ बनाकर सामयिक महदुपकार किया, समर्थ दया सागर से ही ऐसे कार्य बनते हैं, मेघकुमार भी उत्तम जीव था सो शीघ्र ही स्थानापन्न होगया और अपनी पूरी ताकत लगा कर मोक्ष के नजीक पहुँच गया- क्या आप लोग भी अपने पतित जीवन को मेघकुमार की तरह निर्मल करेंगे ? कि अलल खाते में ही जमा रक्खेंगे? यदि कुछ सुधार नहीं किया तो शोकाभि में जलना पड़ेगा; अत: विलास भाव से जरा विरमित होकर अपना श्रेय साधे.
(कौणिक की श्रद्धापूर्ण भक्ति)
महाराजा श्रेणिक का पुत्र 'कौणिक' चम्पा नगरी के राज्य शासन का अधिपति नृपेन्द्र था, वह भगवान् महावीर का अनन्य भक्त था, उसके यह प्रतिज्ञा थी कि जहाँ तक परमात्मा के सुख शान्ति के समचार उपलब्ध न हो तहाँ तक भोजन नहीं करना, इस काम के लिये अनेक नौकर रक्खे हुए थे, प्रायः शाम तक खबर मिल ही जाती थी, इसके लिए बड़ी सुचारु व्यवस्था की हुई थी- एक वक्त भगवन्त चम्पा नगरी के उद्यान में पधारे, कौणिक का हृदय हर्ष से नौ नौ गज उछलने लगा, चतुरंगी सेना ( हाथी-घोड़े-रथ-पैदल ) सजा कर, जनाने
सहित दर्शनार्थ आया, साथ में सेठ-साहकार-सेनापतिShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.cor