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* महावीर जीवन प्रभा *
आकर फिर गुनगुना ने लगा- " इसके मीठे वचनों से मैं खुश नहीं होसकता, वाद से छिटक जाने का यह प्रयोग है , मगर मैं हरगीज छोडगा नहीं, अगर यह सर्वज्ञ होगा तो मेरा संदेह दूर कर देगा, तब मैं इसका शिष्य बन जाऊँगा. बस भगवान् तुरन्त ही बोले
हे इन्द्रभूते ! तेरे दिल में यह संदेह है कि 'जीव है या नहीं' कारण कि “ विज्ञानधन एव एतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय पुनः तान्येवाऽनुविनश्यति, न प्रेत संज्ञाऽस्ति; इति जीवस्याऽभावः " यानी विज्ञान-पिण्ड का नाम ही आत्मा है, वह इन भूतों से उत्पन्न होकर पीछी इन्ही में विलय होजाती है, मृत्यु कोई चीज नहीं है, इसलिये जीव का अस्तित्व नहीं है ; परन्तु देख ! जीव के अस्तित्व का यह वेद वाक्य है- “सर्वेऽयं जीवात्मा ज्ञानमयः, ब्रह्मज्ञानमयः, मनोमयः, वाग्मयः, कायमयः, चक्षुर्मयः, श्रोतमयः, आकाशमयः, वायुमया, तेजोमयः, अप्पयः, पृथ्वीमयः, हर्षपयः, धर्ममयः, अधर्ममयः, दददमयश्च" मतलब कि यह आत्मा ज्ञान-ब्रह्मज्ञान-मन-वचन-कायाचक्षु-कर्ण-आकाश-वायु-तेजस्-जल और पृथ्वी पय है , यह हर्ष-धर्म-अधर्म युक्त है, दया-दान और दमन वाला है ; इससे आत्मा की स्पष्ट सिद्धि है; आत्मा ही कर्ता-मोक्ता और हर्ता है, पापी पाप करता है और पुण्या
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