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* कैवल्य *
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रखना चाहिए, चाहे वे गरीब ही हों; इस बात से इन्कार नहीं किया जासकता कि महावीर के पदानुसार चलने वाले नहीं हैं या प्रयत्नशील नहीं है, पर अत्यधिक संख्या सोचनीय है। अतः मेरी नम्र प्रार्थना है कि मुनिजन उदार चरित बने; जिससे स्व-पर का कल्याण आसानी से होसके; इस विषय में साधुजनों को और श्रावक संघ को अपने अपने कर्तव्यों को अपनाना चाहिए, इससे शासन की अमूल्य सेवा होगी.
* प्रकरण फाँचवाँ *
कैवल्य
जब परमात्मा महावीर देव के दीक्षा का तेरहवाँ वर्ष चल रहा था तब वैशाख शुक्ला १० के दिन पिछली प्रहर में, विजय नामक मुहूर्त में, ऋजुबाला नदी के किनारे, व्यावर्तक नाम के जीर्णोद्यान में, विजयावर्त व्यन्तर के मन्दिर से अतिदूर और अतिनिकट नहीं, ऐसे श्यामक कुटुम्बी के खेत में, शाली-वृक्ष के नीचे, गोदुग्धासन से आतापना लेते हुए, दो उपवास की तपस्या में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ, चन्द्रयोग प्राप्त होने पर शुक्ल
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