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( २६ ) कि महाजन संघ पर मूल उपकार तो अमुक आचार्यों का ही है अतएव उन्होंने वि० सं० ७७५ में भाण राजा के संघ के समय एकत्रित हो इस बात का प्रबन्ध कर लिखित कर लिया कि कोई भी श्रावक किसी भी मन्दिर उपाश्रय, का सभासद क्यों न बन जाय, पर जब वासक्षेप देने का काम पड़ेगा तब तो उनके मूल प्रतिबोधक आचार्य की संतान होगी वही वासक्षेप देगी; इसमें किन्ही अन्य गच्छ वालों को वाद-विवाद करने की आवश्यकता नहीं है। इस आशय का लिखत करने में निम्नलिखित भाचार्य सहमत थे:
(१) नागेन्द्र गच्छीय-सोमप्रभसूरि । (२) निवृत्ति गच्छीय-महेन्द्रसूरि । (३) विद्याधर गच्छीय-हरियानन्दसूरि । (४) उपकेश गच्छीय-सिद्धसूरि । (५) ब्राह्मण गच्छीय-जज्जगसूरि । (६) चंद्र गच्छोय - पद्मप्रभसृरि । (७) कोरंट गच्छीय-सर्वदेवसूरि । (८) वृद्ध गच्छीय-उदयप्रभसूरि । (९) संडारा गच्छीय-ईश्वरसूरि ।
इनके अलावा २८ प्राचार्य और कई राजा और श्रावकों की सही हैं "अंचल गच्छ पटावलि पृष्ठ ७९"। ___इत्यादि और भी बहुत से आचार्यों की सम्मति से यह लिखत हुआ और इसका पालन भी अच्छी तरह होने से संघ में शान्ति और ऐतिहासिक व्यवस्था ठीक तौर पर चलती रही। तथा बाद में भी इसी प्रकार अन्य कोई भी झमेला पड़ता तो वे
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