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द्वितीय अध्याय । बेटा कुम्बारा फिरै, कंन्त जु लूंखो खाय ॥ दीवै उत्तर अंपियो, कहु चेला किण दाय ॥ ४ ॥
गुरुजी सँम्पत नहीं ॥ रूंप्यो सूं लाई दियो, बलँद पुरीणी खाय ॥ करहो सहे जु कांबड़ी, कहु चेला किण दाय ॥५॥
गुरुजी चालै नहीं ॥ होली खड़े इंकाँतरै, पगं अलवाणे जाय ॥ डूंबज गावै एकलो, कहु चेला किण दाय ॥६॥
गुरुजी जोड़ी नहीं ॥ घोड़ा घोड़ी ना छिव, चोर ठयेली" जाय ॥ कामण कन्त जु परिहरै, कहु चेला किण दाय ॥ ७ ॥
गुरुजी जाँग नहीं॥ घोडै मारग छोड़ियो, हिरण फड़ाके जाय ॥ माली तो बिलखो फिरै, कहु चेला किण दाय ॥ ८ ॥
गुरुजी बांग नहीं ॥ पड़ी कवाण न पाकलै, कॉमण ही छिटकायें ॥ कवि बूझंतां खीजियो, कहु चेला किण दाय ॥९॥
गुरुजी गुंण नहीं ॥ अरट न वाजै पार्टडी, बालद प्यासो हि जाय ॥ धवल नखंचे गौडलो, कहु चेला किण दाय ॥ १० ॥
गुरुजी वुहयो नहीं ॥
१-वारा ॥ २-स्वामी ॥ ३-रूखा ॥ ४-दीपक ।। '५-जवाब ।। ६-दिया ।। ७-दौलत, एकता और रेल ॥ ८-रुपया ।। ९-क्यों ।। १०-बैल ।। ११-लकड़ी खाता है। १२-ऊंट ॥ १३-लकड़ी। १४--च रता है (सव में समान ही जानना चाहिये)।। १५-किसान ।। १६-हल चलाता है ।। १७-ए। दिन छोड़ कर ॥ १८-पैर ।। १९-उघाड़े ॥ २०-डोम ही ॥ २१-गाता है ।। २२-अकेला। २३-दूसरा बैल, जूते और सहायक ॥ २४-छूता है ॥ २५-घीसता हुआ ॥ २६-स्त्री। २७-छेड़ती है ॥ २८-कामोद्दीपन, जागताहुआ और कामोद्दीपन ॥ २९-छोड़ दिया ।। ३०-फलांग मारकर ।। ३१-व्याकुल ॥ ३२-लगाम, बाग (सिंघ) और वाग अर्थात् बगीचा ।। ३३-कनान ॥ ३४-चढ़ती है ॥ ३५-स्त्री ॥ ३६-दूर करती है ॥ ३७-शायर ॥ ३८-पूंछने पर ।। ३९-रुट हुआ ॥ ४०-डोरी और गुण (गुण पिछले दो में जानना) ॥ ४१-अरहट यंत्र ।। ४२-पड़ी ॥ ४३-बैल ।। ४४-खींचता है ॥ ४५-गाड़ी ॥ ४६-चेला (तीनों में समान)।
७० सं०
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