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द्वितीय अध्याय । समुझि कीजियो कोय ॥ भांग भखन है सुगम पुनि, लहर कठिन ही होय ॥४१॥
देव सेव फल देत है, जाको जैसो भाव ॥ जैसो मुख करि आरसी, देख सोइ दिखाव ॥ ४२ ॥ कुल बल जैसो होय सो, तैसी करिये बात ॥ बनिक पुत्र जानें कहा, गढ़ लेवे की घात ॥ ४३ ॥ जैसो बन्धन प्रेम को, तैसो बन्ध न और ॥ काठ भेद समरथ हूँ, कमल न छेदै भौर ॥ ४४ ॥ अपनी अपनी गरज सब, बोलत करत निहोरं ॥ विना गरज बोलें नहीं, गिरिधर हूँ के मोर ॥ ४५ ॥ जो सब ही को देत है, दाता कहिये सोय ॥ जलवर बरसत सम विषम, थल न विचारत कोय ॥ ४६॥ जो समुझै जिहि बात को, सो तिहिँ करै विचार ॥ रोग न जानै ज्योतिषी, वैद्य ग्रहन के चौर ॥ ४७ ॥ प्रकृति मिले मन मिलत है, अन मिल ते न मिलाय ॥ दूध दही से जमत है, कांजी से फटि जाय ॥ ४८ ॥ बात कहन की रीति में, है अन्तर अधिकाय ॥ एक वचन रिस ऊपजै, एक वचन से जाय ॥ ४० ॥ एक वस्तु गुण होत हैं, भिन्न प्रकृति के भाय ॥ भंटा एक को पित करत, करत एक को वाय ॥ ५० ॥ स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोई नाहिँ ॥ सेवै पछी सरेस तैरु, निरसे भये उड़ि जाहिँ ॥५१॥ सुख बीते दुख होत है, दुख बीते सुख होत ॥ दिवस गये ज्यों निशि* उदिते', निशि गैत दिवस उदोत ॥५३ ॥ जो भाषै सोई सही, बड़े पुरुष की बान ॥ है अनंगे ताको कहैं, महारूप की खान ॥ ५३ ॥ पर घर कबहु न जाइये, गये घटत है जोत ॥ रविमण्डल में जात शर्शि', हीन' कला छवि होत ॥ ५४ ॥ उरही से कोमल प्रकृति, सजन परम दयाल ॥ कौन सिखावत है कहो, राजहंस को चाल ॥ ५५ ॥ जनि पण्डित विद्या तजहु, मूरख धन अवरेखें ॥ कुलजा शील न परिहरै, कुलटा भूपन देख ॥ ५६ ॥ एक दशा निवहै नहीं, जनि पछितावहु कोय ॥ रवि हू की इक दिवस में, तीन अवस्था होय ॥ ५७ ॥ नर सम्पति दिन पाइके, अति मति करियो कोय ॥ दुर्योधन अति मान से, भयो निर्धन कुल खोय ॥ ५८ ॥ जे चेतन ते क्यों तर्जें, जाको जासों मोह ॥ चुम्बक के पाछे लग्यो, फिरत अचेतने लोह ॥ २९ ॥ घटत बढ़त सम्पति विपति, गति अरहट की जोय ॥ रीती" घटिका भरतु है, भरी सु रीती होय ॥६०॥ उत्तम जन की होड़े करि, नीच न होत रसाल ॥ कौवा कैसे चलि सके, राजहंस की चाल ॥ ६१ ॥ उत्तम जन के सङ्ग में, सहजै ही सुख
१-सहज ॥ २-श्रद्धा ॥ ३-बनिये का बेटा ॥ ४-किला ॥ ५-लकड़ी के काटने में समर्थ भी॥ ६-भौरा ॥ ७-मतलब ।। ८-खुशामद ॥ ९-वादल का गरजना ॥ १०-श्रेष्ठ पर्वत ।। ११-मेव ।। १२-चारस ॥ १३-ऊंचा नांचा ॥ १४-स्थान ॥ १५-गति ॥ १६-फक १७- रसा ॥ १८-बैंगन ।। १९-वादी ॥ २०-हरा ॥ २१-वृक्ष ॥ २२-सूखा ॥ २३-दिन ।। २४-र त्रि ॥ २५-उदय होने पर ॥ २६-बीतने पर ॥ २७-उदय होता है ॥ २८-कामदेव ॥ २९-सूर्यमंडल ॥ ३०-चन्द्रमा ॥ ३१-रहित ॥ ३२-स्वभाव से ही ॥ ३३-मत ।। ३४-देवो ॥ ३५-कुलीन स्त्री ॥ ३६-छोड़ती है ॥ ३७-व्यभिचारिणी स्त्री ॥ ३८-मत ।। ३९-सूर्य ॥ ४०-नष्ट हुआ ॥ ४१-जानदार, समझदार ॥ ४२-बेजान ॥ ४३-देखो । ४४-खाली ॥ ४५-बरावरी ॥ ४६-उत्तम ॥
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