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पञ्चम अध्याय।
.१३-यदि कोई पुरुष चलते हुए स्वर की तरफ से आ कर खाली वर की तरफ खड़ा हो कर वा बैठ कर प्रश्न करे तो कह देना चाहिये कि तुम्हारा कार्य सिद्ध नहीं होगा।
१४-यदि गुरुवार को वायु तत्व, शनिवार को आकाश तत्व, बुधवार को पृथिवी तत्त्व सोमवार को जल तत्त्व तथा शुक्रवार को अग्नि तत्व प्रातःकाल में चले तो जान लेना चाहिये कि-शरीर में जो कोई पहिले का रोग है वह अवश्य मिट जावेगा।
खरों के द्वारा परदेशगमन का विचार । १-जो पुरुष चन्द्र स्वर में दक्षिण और पश्चिम दिशा में परदेश को जावेगा वह परदेश से आ कर अपने घर में सुख का भोग करेगा।
२-सूर्य स्वर में पूर्व और उत्तर की तरफ परदेश को जाना शुभकारी है। ३-चन्द्र स्वर में पूर्व और उत्तर की तरफ परदेश को जाना अच्छा नहीं है। ४-सूर्य स्वर में दक्षिण और पश्चिम की तरफ परदेश को जाना अच्छा नहीं है।
५-ऊर्ध्व (ऊँची) दिशा चन्द्र स्वर की है इस लिये चन्द्र स्वर में पर्वत आदि ऊर्ध्व दिशा में जाना अच्छा है।
६-पृथिवी के तल भाग का स्वामी सूर्य है, इस लिये सूर्य स्वर में पृथिवी के तल भाग में (नीचे की तरफ) जाना अच्छा है, परन्तु सुखमना स्वर में पृथिवी के तल भाग में जाना अच्छा नहीं है।
परदेश में स्थित मनुष्य के विषय में प्रश्नविचार । १-प्रश्न करने के समय यदि स्वर में जल तत्व चलता हो तो प्रश्नकर्ता से कह देना चाहिये कि-सब कामों को सिद्ध कर के वह (परदेशी) शीघ्र ही आ जावेगा।
२-यदि प्रश्न करने के समय स्वर में पृथिवी तरव चलता हो तो प्रश्नकर्ता से कह देना चाहिये कि वह पुरुष ठिकाने पर बैठा है और उसे किसी बात की तकलीफ नहीं है।
३-यदि प्रश्न करने के समय स्वर में वायु तत्त्व चलता हो तो प्रश्नकर्ता से कह देना चाहिये कि-वह पुरुष उस स्थान से दूसरे स्थान को गया है तथा उस के हृदय में चिन्ता उत्पन्न हो रही है।।
१-बृहस्पतिवार ॥ २-दूसरे देश में जाना ॥ ३-कल्याणकारी ॥ ४-ठहरे हुए ॥ ५-"स्वर में" अर्थात् चाहे जिस स्वर में ॥
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