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पञ्चम अध्याय ।
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तीज
जन्मपत्री के बनानेवाले निद्वान् को तथा ज्योतिष विद्या को दोष देते हैं अर्थात् इस विद्या को असत्य (झूठा) बतलाते हैं, परन्तु विचार कर देखा जाये तो इस विषय में न तो जन्मपत्र के बनाने वाले विद्वान् का दोष है और न ज्योतिष विद्या का ही दोष है किन्तु दोष केवल जन्मसमय में ठीक लग्न न लेने का है, तात्पर्य यह है कि-यदि जन्मसमय में ठीक रीति से लग्न ले लिया जावे तथा उसी के अनुसार जन्मपत्री बनाई जावे तो उस का शुभाशुभ फल अवश्य मिल सकता है, इस में कोई भी सन्देह नहीं है, परन्तु शोक का विषय तो यह है कि-नाममात्र के ज्योतिषी लोग लग्न बनाने की क्रिया को भी तो ठीक रीति से नहीं जानते हैं फिर उन की बनाई हुई जन्मकुंडली (टेवे) से शुभाशुभ फल कैसे विदित हो सकता है, इस लिये हम लग्न के बनाने की क्रिया का वर्णन अति सरल रीति से करेंगे।
___ सोलह तिथियों के नाम । सं० संस्कृत नाम हिन्दी नाम सं० संस्कृत नाम हिन्दी नाम १ प्रतिपद् पड़िवा ९ नवमी नौमी २ द्वितीया . द्वैज
१० दशमी
दशवीं ३ तृतीया
११ एकादशी ग्यारस ४ चतुर्थी चौथ १२ द्वादशी बारस ५ पञ्चमी पाँचम १३ त्रयोदशी तेरस ६ षष्ठी छठ
१४ चतुर्दशी चौदस ७ सप्तमी
१५ पूर्णिमा वा पूनम वा पूरनमासी
पूर्णमासी ८ अष्टमी आठम १६ अमावास्या अमावस
सूचना-कृष्ण पक्ष ( वदि ) में पन्द्रहवीं तिथि अमावास्या कहलाती है तथा शुक्ल पक्ष (सुदि) में पन्द्रहवीं तिथि पूर्णिमा वा पूर्णमासी कहलाती है ॥
सात वारों के नाम । सं० संस्कृत नाम हिन्दी नाम मुसलमानी नाम अंग्रेज़ी नाम १ सूर्यवार इतवार ___ आइतवार २ चन्द्रवार सोमवार पीर
मन्डे ३ भौमवार मंगलवार मंगल बुधवार
बुधवार गुरुवार
बृहस्पतिवार जुमेरात शुक्रवार शुक्रवार जुमा
फ्राइडे शनिवार शनिश्चर शनीवार
सट.
सातम
सन्डे
ट्यजडे
बुध
वेड्नेस्डे थर्सडे
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