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पञ्चम अध्याय !
६८७.
की संसारयात्रा सुखपूर्वक व्यतीत हो तथा हम सब पारलौकिक सुख के भी अधिकारी हों ।
सब ही जानते हैं कि सच्ची स्वामिभक्ति को हृदय में स्थान देने का मुख्य हेतु प्रत्येक पुरुष का सद्भाव और उस का आत्मिक सद्विचार ही है, इस लिये इस विषय में हम केवल इस उपदेश के सिवाय और कुछ नहीं लिख सकते हैं कि - ऐसा करना ( स्वामिभक्त बनना ) सर्व साधारण का परम कर्तव्य है।
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स्मरण रहे कि - राज्यभक्ति का रखना तथा राज्यनियम के अनुसार वर्ताव करना ( जो कि ऊपर लिखे अनुसार मनुष्य का परम धर्म है ) तब ही बन सकता है। जब कि मनुष्य राज्यनियम ( कानून ) को ठीक रीति से जानता हो, इस लिये मनुष्यमात्र को उचित है कि वह अपने उक्त कर्तव्य का पालन करने के लिये राज्यनियम का विज्ञान ठीक रीति से प्राप्त करे ।
यद्यपि राज्यनियम का विषय अत्यन्त गहन है इस लिये सर्व साधारण राज्यनियम के सब अङ्गों को भली भाँति नहीं जान सकते हैं तथापि प्रयत्न करने से इस ( राज्यनियम ) की मुख्य २ और उपयोगी बातों का परिज्ञान तो सर्व साधारण को भी होना कोई कठिन बात नहीं है, इस लिये उपयोगी और मुख्य २ बातों को तो सर्व साधारण को अवश्य जानना चाहिये ।
यद्यपि हमारा विचार इस प्रकरण में राज्यनियम के कुछ आवश्यक विषयों के भी वर्णन करने का था परन्तु ग्रन्थ के विस्तृत हो जाने के कारण उक्त विषय का वर्णन नहीं किया है, उक्त विषय को देखने की इच्छा रखनेवाले पुरुषों को ताजीरातहिन्द अर्थात् हिन्दुस्थान का दण्डसंग्रह नामक ग्रन्थ ( जिस का कानून ता० १ जानेवरी सन् १९६२ ई० से अब तक जारी है ) देखना चाहिये ॥
यह पञ्चम अध्याय का राजनियमवर्णन नामक आठवां प्रकरण समाप्त हुआ ॥
नवाँ प्रकरण | ज्योतिर्विषयवर्णन ।
ज्योतिषशास्त्र का संक्षिप्त वर्णन ।
ज्योतिःशास्त्र का शब्दार्थ ग्रहों की विद्या है, इस में ग्रहों की गति और उन के परस्पर के सम्बन्ध को देख कर भविष्य ( होनेवाली ) वार्ताओं के जानने के नियमों का वर्णन किया गया है, वास्तव में यह विद्या भी एक दिव्य चक्षुरूप है,
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