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जैनसम्प्रदायशिक्षा। भूतकालिक चरित्र का अनुभव होना चाहिये, इसी भूतकालिक चरित्र को ऐतिहासिक विषय कहते हैं।
ऐतिहासिक विषय के दो भेद हैं-ऐतिहासिक वृत्त और ऐतिहासिक घटना, इन में से पूर्व भेद में पूर्वकालिक पुरुषों के जीवनचरित्रों का समावेश होता है तथा दूसरे भेद में पूर्व काल में हुई सब घटनाओं का समावेश होता है, इस लिये मनुष्य को उक्त दोनों विषयों के ग्रन्थों को अवश्य देखना चाहिये, क्योंकि इन दोनों विषयों के ग्रन्थों के अवलोकन से अनेक प्रकारके लाभ प्राप्त होते हैं।
स्मरण रहे कि-जीवन के लक्ष्य के नियत करने के लिये जिस प्रकार मनुष्य को ऐतिहासिक विषय के जानने की आवश्यकता है उसी प्रकार उसे पदार्थवि. ज्ञान की भी आवश्यकता है, क्योंकि पदार्थविज्ञान के विना भी मनुष्य अनेक समयों में और अनेक स्थानों में धोखा खा जाता है और धोखे का खाना ही अपने लक्ष्य से चूकना है इसी लिये पूर्वीय विद्वानों ने इन दोनों विषयों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध माना है, अतः मनुष्य को पदार्थ विज्ञान के विषय में भी यथाशक्य अवश्य परिश्रम करना चाहिये। यह पञ्चम अध्याय का ऐतिहासिक व पदार्थविज्ञानवर्णन नामक सातवाँ प्रकरण
समाप्त हुआ ॥
आठवा प्रकरण। राजनियमवर्णन।
--- CoreCOM राजनियमों के साथ प्रजा का सम्बन्ध । धर्मशास्त्रों का कथन है कि-राजा और प्रजा का सम्बन्ध ठीक पिता और पुत्र के समान है, अर्थात् जिस प्रकार सुयोग्य पिता अपने पुत्र की सर्वथा रक्षा करता है उसी प्रकार राजा का धर्म है कि-वह अपनी प्रजा की रक्षा करे, एवं जिस प्रकार सुयोग्य पुत्र अपने पिता के अनेक उपकारों का विचार कर भक्त हो कर सर्वथा उस की आज्ञा का पालन करता है उसी प्रकार प्रजा का धर्म है कि-वह अपने राजा की आज्ञा को माने अर्थात् राजा के नियत किये हुए नियमों का उल्लङ्घन न कर सर्वदा उन्हीं के अनुसार वर्ताव करे ।
१-हां यह दूसरी बात है कि-राजनियमों में यदि कोई नियम प्रजा के विपरीत हो अर्थात् सौख्य और कर्तव्य में बाधा पहुँचाने वाला हो तो उस के विषय में एकमत हो कर राजा से निवेदन कर उस का संशोधन करवा लेना चाहिये, सुयोग्य तथा पुत्रवत् प्रजापालक राजा प्रजा के बाधक नियम को कभी नहीं रखते हैं, क्योंकि प्रजा के सुख के लिये ही तो नियमों का संगठन किया जाता है।
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